________________
मानः
139
मालोपमा समास अत्यल्प अथवा प्रायः नहीं होते। यथा-अनङ्गमङ्गलभुवस्तदपाङ्गस्य भङ्गयः। जनयन्ति मुहुर्दूनामन्तःसन्तापसन्ततिम्।। (8/3-5)
मानः-विप्रलम्भ शृङ्गार का एक प्रकार। प्रणय में नायक, नायिका अथवा दोनों का कुपित हो जाना मान कहलाता है-मानः कोपः। यह दो प्रकार का होता है-प्रणयजन्य और ईर्ष्याजन्य। जिन उपायों से नायक कुपित नायिका को प्रसन्न करता है, वे मानभङ्ग के उपाय कहे जाते हैं। सा.द. में इस सन्दर्भ में छह उपाय बताये गये हैं-साम, भेद, दान, नति, उपेक्षा और रसान्तर। (3/204)
मार्ग:-गर्भसन्धि का एक अङ्ग। यथार्थ कथन करना मार्ग कहा जाता है-तत्त्वार्थकथनं मार्गः। इसका उदाहरण च.कौ. में राजा हरिश्चन्द्र का विश्वामित्र के प्रति कहा गया यह वचन है- गृह्यतामर्जितमिदं भार्यातनयविक्रयात्। शेषस्यार्थे करिष्यामि चाण्डालेऽप्यात्मविक्रयम्।। (6/97)
माला-एक नाट्यलक्षण। अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिए अनेक अर्थों का प्रतिपादन माला कहा जाता है-माला स्याद्यदभीष्टार्थं नैकार्थप्रतिपादनम्। यथा-अ.शा. में शकुन्तला के प्रसादनरूप अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिए दुष्यन्त के द्वारा इस पद्य में अनेक अर्थों का प्रतिपादन किया जा रहा है-किं शीतलैः क्लमविनोदिभिरावातैः, संवाहयामि नलिनीदलतालवृन्तैः। अङ्के निवेश्य चरणावुत पद्मताम्रौ, संवाहयामि करभोरु! यथा सुखं ते।। (6/195) __मालादीपकम्-एक अलङ्कार। जब एक धर्म उत्तरोत्तर अनेक धर्मियों से सम्बद्ध होता जाये तो मालादीपक नामक अलङ्कार होता है-तन्मालादीपकं पुनः। धर्मिणामेकधर्मेण सम्बन्धो यद्यथोत्तरम्। यथा-त्वयि सङ्गरसम्प्राप्ते धनुषासादिताः शराः। शरैररिशिरस्तेन भूस्तया त्वं त्वया यशः।। यहाँ प्राप्तिनामक धर्म उत्तरोत्तर धर्मियों के साथ सम्बद्ध होता जाता है। इस पद्य में धनुष के द्वारा शर, शरों के द्वारा शत्रुओं के शिर, शिरों के द्वारा पृथ्वी, पृथ्वी के द्वारा राजा तथा राजा के द्वारा यश की प्राप्ति वर्णित है। (10/100) ____ मालोपमा-एक अर्थालङ्कार। जब एक उपमेय के अनेक उपमान प्रदर्शित किये जायें तो मालोपमा नामक अलङ्कार होता है-मालोपमा यदेकस्योपमानं बहु दृश्यते। यथा-वारिजेनेव सरसी, शशिनेव निशीथिनी।