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महाकाव्यम्
महाकाव्यम् होती है। कहीं-कहीं अनेक छन्दों वाले सर्ग भी दृष्टिगत होते हैं। कथा के प्रारम्भ में नमस्कारात्मक, आशीर्वादात्मक अथवा वस्तुनिर्देशात्मक मङ्गलाचरण होता है। मध्य-मध्य में कहीं दुष्टों की निन्दा तथा सज्जनों का गुणकीर्तन किया जाता है। इससे कथावस्तु के उद्देश्य में उदात्तता आती है। समग्र कथानक सन्ध्या, सूर्य, चन्द्र, रात्रि, प्रदोष, अन्धकार, दिन, प्रातः, मध्याह्न, मृगया, पर्वत, ऋतु, वन, सागर, सम्भोग, विप्रलम्भ, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, रण, यात्रा, विवाह, मन्त्र, पुत्र आदि के साङ्गोपाङ्ग वर्णनों से यथासम्भव सम्पन्न होता है। सभी नाट्यसन्धियों का भी निर्वाह होता है। इसका नाम कवि के चरित्र, नायक अथवा किसी अन्य चरित्र के नाम से भी किया जाता है तथा सर्ग का नामकरण उसमें वर्णित कथा से किया जाता है। इसके उदाहरण रघुवंश, शिशुपालवध, नैषध तथा स्वयं कविराजविरचित राघवविलासादि हैं। ___यदि यह ऋषिप्रणीत (आर्ष काव्य) हो तो सर्गों का नाम आख्यान होता है, यथा महाभारत। प्राकृत भाषा में निबद्ध होने पर सर्ग की संज्ञा आश्वास होती है तथा स्कन्धक अथवा गलितक छन्दों का प्रयोग होता है, यथा सेतुबन्ध अथवा कुवलयाश्वचरितम् में। अपभ्रंश के महाकाव्य में सर्गों की संज्ञा कडवक होती है तथा अपभ्रंशयोग्य ही छन्दों का विधान किया जाता है। इसका उदाहरण कर्णपराक्रमः है-सर्गबन्धो महाकाव्यं तत्रैको नायकः सुरः। सद्वंशः क्षत्रियो वापि धीरोदात्तगुणान्वितः। एकवंशभवा भूपाः कुलजा बहवोऽपि वा। शृङ्गारवीरशन्तानामेकोऽङ्गीरस इष्यते। अङ्गानि सर्वेऽपि रसाः सर्वे नाटकसन्धयः। इतिहासोद्भवं वृत्तमन्यद् वा सज्जनाश्रयम्। चत्वारस्तत्र वर्गाः स्युस्तेष्वेकञ्च फलं भवेत्। आदौ नमस्क्रियाऽऽशीर्वा वस्तुनिर्देश एव वा। क्वचिन्निन्दा खलादीनां सतां च गुणकीर्तनम्। एकवृत्तमयैः पद्यैरवसानेऽन्यवृत्तकैः। नातिस्वल्पा नातिदीर्घाः सर्गा अष्टाधिका इह। नानावृत्तमय: क्वापि सर्गः कश्चन दृश्यते। सर्गान्ते भाविसर्गस्य कथायाः सूचनं भवेत्। सन्ध्यासूर्येन्दुरजनीप्रदोषध्वान्तवासराः। प्रातर्मध्याह्नमृगयाशैलर्तुवनसागराः। सम्भोगविप्रलम्भौ च मुनिस्वर्गपुराध्वराः। रणप्रयाणोपयममन्त्रपुत्रोदयादयः। वर्णनीया यथायोगं साङ्गोपाङ्गा अमी इह। कवेत्तस्य वा नाम्ना नायकस्येतरस्य वा। नामास्य, सर्गोपादेयकथया सर्गनाम तु। अस्मिन्नार्षे पुनः सर्गा भवन्त्याख्यानसंज्ञकाः।। प्राकृतैर्निर्मिते तस्मिन् सर्गा आश्वाससंज्ञकाः। छन्दसा