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मनोरथ:
मदः
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मद्योपयोगजः। इसके सेवन के उपरान्त उत्तम कोटि के पुरुष सो जाते हैं, मध्यम कोटि के हँसते और गाते हैं तथा नीच कोटि के पुरुष कठोर वचन (गाली आदि) बोलते और रोते हैं। यथा-प्रातिभं त्रिसरकेण गतानां वक्रवाक्यरचनारमणीयः। गूढसूचितरहस्यसहास: सुभ्रुवां प्रववृते परिहासः ।। इस पद्य में मद्यपान के अनन्तर रमणियों के हासपरिहास के प्रारम्भ होने का वर्णन है । (3/153)
मदः - नायिका का सात्त्विक अलङ्कार । सौभाग्य, यौवन आदि के गर्व से उत्पन्न मनोविकार को मद कहते हैं-मदो विकार : सौभाग्ययौवनाद्यवलेपजः । यथा - मा गर्वमुद्वह कंपोलतले चकास्ति कान्तस्वहस्तलिखिता मम मञ्जरीति। अन्यापि किं न खलु भाजनमीदृशीनां वैरी न चेद्भवति वेपथुरन्तराय: | | ( 3/123)
मध्या - स्वकीया नायिका का एक भेद । विचित्र प्रकार की रति में प्रवीण, यौवन तथा कामभाव से युक्त, प्रेमालाप में प्रगल्भ तथा जो रति में अधिक लज्जा न करे वह मध्यानामक स्वकीया नायिका होती है - मध्या विचित्रसुरता, प्ररूढस्मरयौवना । ईषत्प्रगल्भवचना मध्यमव्रीडिता मता ।। इनमें से एक-एक गुण भी उसके मध्यात्व का आधायक है। यथा-नेत्रे खञ्जनगञ्जने सरसिजप्रत्यर्थि पाणिद्वयं, वक्षोजौ करिकुम्भविभ्रमकरीमत्युन्नतिं गच्छतः। कान्तिः काञ्चनचम्पकप्रतिनिधिर्वाणी सुधास्यन्दिनी, स्मेरेन्दीवरदामसोदरवपुस्तस्याः कटाक्षच्छटा: ।। इस पद्य में प्ररूढयौवना नायिका का वर्णन है।
मान की स्थिति में मध्यानायिका के धीरा, अधीरा तथा धीराधीरा के रूप में तीन भेद होते हैं। ये तीनों प्रकार की मध्या नायिकायें पति के प्रेम के आधार पर ज्येष्ठा और कनिष्ठा के रूप में दो-दो प्रकार की होती हैं। इस प्रकार मध्या नायिका के छह भेद निष्पन्न होते हैं। (3/72)
मनोरथ:- एक नाट्यलक्षण । भङ्ग्यन्तर से अपना अभिप्राय प्रकट करने को मनोरथ कहते हैं- मनोरथस्त्वंभिप्रायस्योक्तिर्भङ्ग्यन्तरेण यत् । यथा - रतिकेलिकलः किञ्चिदेषो मन्मथमन्थरः । पश्य सुभ्रु ! समाश्वस्तां कादम्बश्चुम्बति प्रियाम् ।। (6/204)