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________________ प्रहेलिका 122 प्राप्तिः एक या दो अङ्कों में वर्णित होता है। यथा, लटकमेलकम् आदि। नपुंसक, कञ्चुकी, तापसादि के द्वारा कामुक, बन्दी, योद्धाओं आदि के वेष तथा वाणी के अनुकरण में विकृत नामक प्रहसन होता है-विकृतन्तु विदुर्यत्र षण्डकञ्चुकितापसाः। भुजङ्गचारणभटप्रभृतेर्वेशवाग्युताः।। यह सङ्कीर्ण के ही अन्तर्गत आ जाता है, अतः भरतमुनि ने इसका पृथक् उल्लेख नहीं किया। (6/276-80) प्रहेलिका-एक शब्दालङ्कार। इसमें किसी बात को छुपाकर वर्णन किया जाता है। यह उक्तिवैचित्र्यमात्र है, अतएव रस में बाधक होने के कारण आचार्य विश्वनाथ इसे अलङ्कार नहीं मानते-रसस्य परिपन्थित्वान्नालङ्कारः प्रहेलिका। उक्तिवैचित्र्यमानं सा च्युतदत्ताक्षरादिका।। च्युतदत्ताक्षरा, क्रिया, कारकगुप्ति आदि इसके अनेक भेद हैं। कूजन्ति कोकिला: साले, यौवने फुल्लमम्बुजम्। किं करोतु कुरङ्गाक्षी वदनेन निपीडिता।। यह प्रहेलिका च्युताक्षरा, दत्ताक्षरा और च्युतदत्ताक्षरा तीनों का उदाहरण है। 'रसाले' के स्थान पर 'साले' कहा गया है, यहाँ अक्षरच्युति है। 'वने' के स्थान पर 'यौवने' कहा गया है, अत: दत्ताक्षरा नामक भेद हुआ। 'मदनेन' के स्थान पर वदनेन' आया है, अत: वकार को च्युत करके मकार का आदान करना पड़ता है। पाण्डवानां सभामध्ये दुर्योधन उपागतः। तस्मै गां च सुवर्णं च सर्वाण्याभरणानि च।। यह क्रियागुप्ति प्रहेलिका का उदाहरण है। 'अदुः यः अधनः' इस प्रकार भङ्ग करने पर अदुः यह क्रियापद प्राप्त होता है। (10/17) प्राप्ति:-मुखसन्धि का एक अङ्ग। सुख के लाभ को प्राप्ति कहते हैं-प्राप्तिः सुखागमः। यथा वे.सं. में भीम की प्रतिज्ञा के अनन्तर द्रौपदी का यह कथन-अश्रुतपूर्वं खल्विदं वचनं, तत्पुनः पुनर्भण। (6/74) प्राप्ति:--एक नाट्यलक्षण। एक अंश के द्वारा शेष के अनुमान को प्राप्ति कहते हैं-प्राप्तिः केनचिदंशेन किञ्चिद्यत्रानुमीयते। यथा प्र.व. में 'अनेन खलु सर्वतश्चरतां चञ्चरीकेणावश्यं विदिता भविष्यति प्रियतमा मे प्रभावती।' यहाँ चञ्चरीक की सर्वत्र विचरणशीलता के द्वारा प्रभावती की कुत्रवर्त्तिता का अनुमान किया गया है। (6/182) प्राप्तिः -शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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