SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना 121 प्रहसनम् है-मञ्जीरादिषु रणितप्रायं पक्षिषु तु कूजितप्रभृति। स्तनितभणितादिसुरते मेघादिषु गर्जितप्रमुखम्।। यह वाक्यदोष है। (7/4) प्रस्तावना-देखें आमुखम्। प्रस्थानकम्-उपरूपक का एक भेद। यह लय, तालादि तथा विलास से सम्पन्न दो अङ्कों की रचना है। इसमें सुरापान के संयोग से उद्दिष्ट अर्थ की पूर्ति होती है, कैशिकी और भारती वृत्तियों का प्रयोग होता है, नायक दास तथा नायिका दासी होती है तथा उपनायक उससे भी हीन कोटि का होता है-प्रस्थाने नायको दासो हीनः स्यादुपनायकः। दासी च नायिका वृत्तिः कैशिकी भारती तथा। सुरापानसमायोगादुद्दिष्टार्थस्य संहतिः। अङ्कौ द्वौ लयतालादिर्विलासो बहुलस्तथा।। इसका उदाहरणशृङ्गारतिलकम् है। (6/286) प्रहर्षः-एक नाट्यालङ्कार। आनन्दाधिक्य को प्रहर्ष कहते हैं-प्रहर्षः प्रमदाधिक्यम्। यथा अ.शा. में दुष्यन्त का यह कथन-तत्किमिदानीमात्मानं पूर्णमनोरथं नाभिनन्दामि। (6/239) प्रहर्षः-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) प्रहसनम-रूपक का एक भेद। भाण के समान सन्धि, सन्ध्यङ्ग, लास्याङ्ग तथा अङ्गों की योजना वाला निन्द्य पुरुषों का कविकल्पित कथानक प्रहसन कहा जाता है। इसमें आरभटी वृत्ति तथा विष्कम्भक और प्रवेशक का प्रयोग नहीं किया जाता तथा वीथ्यङ्गों की स्थिति ऐच्छिक है। इसमें हास्य रस प्रधान रहता है-भाणवत्सन्धिसन्ध्यङ्गलास्याङ्गाबैर्विनिर्मितम्। भवेत्प्रहसनं वृत्तं निन्द्यानां कविकल्पितम्। अत्र नारभटी नापि विष्कम्भकप्रवेशकौ। अङ्गी हास्यरसस्तत्र वीथ्यङ्गानां स्थितिर्न वा।।। इसके शुद्ध और सङ्कीर्ण नामक दो भेद नायक के अनुसार कल्पित किये गये हैं। यदि तपस्वी, सन्यासी अथवा ब्राह्मण आदि में से कोई एक धृष्ट नायक हो तो वह शुद्धप्रहसनकहा जाता है। इसका उदाहरणकन्दर्प केलिः है। किसी भी अधृष्ट पुरुष के नायक होने पर यह सङ्कीर्ण प्रहसन होता है, यथा धूर्तचरितम्। कुछ लोग बहुत से धृष्ट पात्रों का वृत्त वर्णित होने पर इसे सङ्कीर्ण कहते हैं। भरतमुनि ने वेश्या, चेट, नपुंसक, विट आदि के वेश तथा चेष्टा के अविकृत वर्णन में सङ्कीर्ण प्रहसन माना है। इसका कथानक
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy