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________________ प्रत्यनीक: 116 प्रयत्नम् निमित्त कहीं गुण होता है, कहीं क्रिया । इस प्रकार ये सोलह भेद हुए । इन सोलह प्रकारों में भी कहीं फल उत्प्रेक्षित होता है, कहीं हेतु। इस प्रकार निष्पन्न हुए बत्तीस प्रकारों में भी प्रस्तुत पदार्थ कहीं शब्दोक्त होता है, कहीं गम्यमान। इस प्रकार प्रतीयमानोत्प्रेक्षा के कुल चौंसठ भेद हुए । (10/59) प्रत्यनीक:- एक अर्थालङ्कार | शत्रु का तिरस्कार करने में अशक्त होने पर यदि किसी उससे सम्बन्धित का तिरस्कार किया जाये, जिससे शत्रु का ही उत्कर्ष सिद्ध होता हो तो प्रत्यनीक नामक अलङ्कार होता है- प्रत्यनीकमशक्तेन प्रतीकारे रिपोर्यदि । तदीयस्य तिरस्कारस्तस्यैवोत्कर्षसाधकः ।। यथा - मध्येन तनुमध्या मे मध्यं जितवतीत्ययम् । इभकुम्भौ भिनत्त्यस्याः कुचकुम्भनिभो हरिः ।। इस पद्य में नायिका से पराजित सिंह गजराज के मस्तक को विदीर्ण कर रहा है । ( 10/112 ) प्रत्ययश्लेष :- श्लेषालङ्कार का एक भेद । जहाँ प्रत्यय के श्लिष्ट होने के कारण श्लेष की प्रतीति हो, यथा-किरणा हरिणाङ्कस्य दक्षिणश्च समीरणः। कान्तोत्सङ्गजुषां नूनं सर्व एव सुधाकिरः । । यहाँ 'सुधाकिरः ' इस पद में क्विप् और क प्रत्ययों का श्लेष है। 'सुधां किरति' इस अर्थ में कृ विक्षेपे से क्विप् प्रत्यय करने पर 'सुधाकिर्' तथा क प्रत्यय करने पर 'सुधाकिर' रूप बनते हैं। पद्य में प्रयुक्त पद क्विबन्त शब्द का प्रथमा बहुवचन का तथा के प्रत्ययान्त शब्द का प्रथमा एकवचन का रूप है। (10/14 की वृत्ति) प्रपञ्चः - एक वीथ्यङ्ग । असत्यभूत तथा हास्य उत्पन्न करने वाला परस्पर कथन प्रपञ्च कहा जाता है - मिथो वाक्यमसद्भूतं प्रपञ्चो हास्यकृन्मतः। धनञ्जय के अनुसार यह परस्पर कथन एक दूसरे की स्तुतिरूप होता है। वि.उ. में विदूषक और चेटी का परस्पर वार्त्तालाप इसका उदाहरण है। (6/264) प्रबोधनम् - शिल्पक का एक अङ्ग । (6/295) प्रयत्नम् - शिल्पक का एक अङ्ग । (6/295)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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