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परिहारः
पर्यायः प्रश्नपूर्वक तथा प्रश्न के विना, यह दो प्रकार की परिसङ्ख्या शाब्द तथा अर्थसिद्ध के रूप में दो-दो प्रकार की होकर कुल चार प्रकार की हो जाती है। यह यदि श्लेषमूलक हो तो अधिक चारुत्व उत्पन्न करती है। (10/106)
परिहारः-एक नाट्यालङ्कार। किये हुए अनुचित कार्य का परिमार्जन परिहार कहा जाता है--परिहार इति प्रोक्तः कृतानुचितमार्जनम्। यथा, वाली का राम के प्रति यह कथन-प्राणप्रयाणदुःखार्त उक्तवानस्म्यनक्षरम्। तत्क्षमस्व विभो, किञ्च सुग्रीवस्ते समर्पितः।। (6/234)
परीवादः-एक नाट्यालङ्कार। डाँटने को परीवाद कहते हैं-भर्त्सना तु परीवादः। यथा वे.सं.में दुर्योधन का सूत के प्रति यह कथन-धिक् धिक् सूत! किं कृतवानसि। वत्सस्य मे प्रकृतिदुर्ललितस्य पापः पापं विधास्यति'। (6/225)
परोढ़ा-परकीया नायिका का एक भेद। दूसरे के द्वारा परिणीता स्त्री परोढ़ा कही जाती है। यह अभिसार आदि में निरत रहने वाली होती है। यह कुलटा तथा निर्लज्जा होती है-यात्रादिनिरतान्योढ़ा कुलटा गलितत्रपा। आदि पद से दूतीप्रेषणादि के द्वारा नायक को नियन्त्रित करने का ग्रहण होता है। स्वामी निश्वसितेऽप्यसूयति मनोजिघ्रः सपत्नीजनः, श्वश्रूरिङ्गितदैवतं नयनयोरीहालिहो यातरः। तदूरादयमञ्जलिः किमधुना दृग्भङ्गिभावेन ते, वैदग्धीमधुरप्रबन्धरसिक व्यर्थोऽयमत्र श्रमः।। इस पद्य में स्वपति के लिए 'स्वामी' पद का प्रयोग यह द्योतित करता है कि वस्त्रदानादि के द्वारा वह केवल मेरा स्वामी ही है, प्रिय नहीं। तुम तो चतुर तथा मधुर प्रबन्धों में रसिक होने के कारण मेरे प्रिय हो। इस प्रकार इस नायिका की परपुरुषविषयक रति प्रतीत होती है। धनञ्जय ने परोढ़ा को अङ्गीरस में ग्रहण करने का निषेध किया है-इयं त्वङ्गिनि प्रधाने रसे न कदाचिन्निबन्धनीयेति। (3/82) __ पर्यायः-एक अर्थालङ्कार। जहाँ एक वस्तु अनेक में अथवा अनेक वस्तुएँ एक में क्रम से हों अथवा की जायें तो पर्याय अलङ्कार होता है-क्वचिदेकमनेकस्मिन्ननेक चैकगं क्रमात्। भवति क्रियते चा चेत्तदा पर्याय