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तृतीयः परिच्छेदः ।
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वा' । वइरं । वज्जं । 'पूर्वशब्दे विकर्षो वा पूर्वस्येत्वं च वस्य मः' । पुरिमं पुव्वं ॥ ६२॥ श्री-ही-क्लान्त-क्लेश-ग्लान -स्वप्न-स्पर्श आदर्श-हर्ष-अर्ह-इन अब्दों में युक्त वर्ण का विकर्ष हो अर्थात् युक्त वर्ण का पृथक-पृथक विभाग हो और विभक्त पूर्व वर्ण के साथ इकार स्वर हो । (श्रीः) का शू-री विभाग हो गया और श के साथ इकार स्वर लग गया । २६ सेश को स। सिरी । एवम् - ( ही ) हिरी । ( क्लान्तः ) ५८ से आकार को अकार । किलंतों । ( क्लेशः ) २६ से सकार । किलेसो । ( म्लानः ) २५ से न कोण । मिलाणो । ( स्वप्नः ) ५ से वलोप | 'उदीषत् ' (१+३ ) सकार के साथ इकार । पकार-नकार का विकर्ष, इकार । १८ से प को व । २५ से न को णकार । सिविणो । 'स्व' का विकर्ष क्यों नहीं ? वैसा प्रयोग नहीं होता है । अथवा वा को अनुवृत्ति से व्यवस्थित कार्य होगा, अतः पूर्व का त्याग करके द्वितीय अक्षर 'म' में विकर्ष, इकार होगा । पूर्ववत् णकार | सिविणो । वा-पद की अनुवृत्ति करके स्पर्श - आदर्श में विकल्प से विकर्ष, इकार होगा । ( स्पर्शः ) ' स्पस्य' (३+३६ ) से रूप को फ । रेफ और शकार का विकर्ष । रेफ के साथ इकार । २६ से श को सकार । फरिसो । पक्ष में- ६१ से अनुस्वारागम । ५ से रेफलोप । २६ से सकार । फादेश पूर्ववत् । फंसो | एवम् - ( दर्शनम् ) विकर्ष पूर्ववत् । २५ से नकार को णकार । दरिसणं । पक्ष में-दंसणं । पूर्ववत् अनुस्वारादि । कहीं पर नित्य विकर्ष और इकार होगा। (आदर्शः) २ से दकार का लोप । रेफ और शकार का विकर्ष, इकार । २६ से श को स । आअरिसो । (हर्षः ) हरिसो । हर्ष पद से रेफ षकार का विकर्षादि अन्यत्र भी जानना । (उत्कर्षः) ३ से तलोप । ६ से कद्वित्व । रेफ षकार का विकर्ष । २६ से ष को स । उक्करिलो । एवम् - (अमर्षः) अमरिसो । ( वर्षः ) वरिसो । ( वर्षवरः ) वरिसवरो । कहीं पर 'ई' का विकर्ष नहीं होगा । ( वर्षारात्रः ) 'आ समृद्धयादिषु वा' ( १ + २ ) से आकार । ५ से रेफलोप । २६ से ष को सकार । ५८ से रेफ के आकार को अकार । ६ से तद्वित्व । वासारत्तो । ( वर्षशतम् ) पूर्ववत् । आकार, रेफलोप, ष श को सकार । २ से तकार का लोप । वाससअं । 'ई' का कहीं नित्य विकर्ष और इकार, और कहीं नहीं। (अर्हः) अरिहो । (ग) गरिहा । (बर्हिणः ) बरिहिणो । कहीं नहीं होगा। जैसे ( दशार्हः ) २६ से श को स । रेफ के अधःस्थित हकार का कहीं लोप होता है-इससे हकार का लोप हो गया । दसारो । 'लोष -प्लुष्ट स्नायु श्लोक और विश्लेष शब्दों में युक्त वर्ण का विभाग हो और विभक्त पूर्व वर्ण के साथ इकार हो' । (प्लोषः ) २६ से ष को स । पिलोसो । (प्लुष्टः ) २८ से ष्ट को ठ । ६ से द्वित्व । ७ से टकार । पिलुट्ठो । (स्नायुः ) सकार का विभाग, इकार । २५ से णकार । २ से यलोप । सिणाऊ । (श्लोकः ) २६ से श को स । २ से कलोप । सिलोओ । वज्र-शब्द में विकल्प से युक्त का विकर्ष और पूर्व में इकार हो । ( वज्रम् ) विकर्ष -इकार होने पर 'वजिरम्' हुआ । २ से जलोप । वहरं । पक्ष में-रेफलोप, द्विश्व। वज्जं । पूर्व-शब्द में युक्त का विकर्ष, इकार- योग और वकार को मकार । (पूर्वम् ) ५९ से ऊकार को उकार । विकर्ष, मकारयोग, व कोम । पुरिमं । पत्र में-५ से रेफलोप, २ से द्वित्व । पुव्वं ॥ ६२ ॥
नोट - नं. (९) ऋतोऽत् । (२६) शषोः सः । (५८) अदातो यथादिषु वा । (२५) नो णः सर्वत्र । (५) सर्वत्र लवराम । ( १८ ) पो वः । (६१) वक्रादिषु । (२) कगचजतदपयवा प्रायो लोपः । (३) उपरि लोपः कगडतदपषसामू । ( ६ )