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प्राकृतप्रकाशेसेवादिषु च-एषु द्वित्वं वा स्यात् । उभमत्र विभाषेयम् । 'सेवा कौतूहलं देवं निहितं नखजानुनी । इवार्थका निपाताश्च एतदाद्यास्तथापरान् ॥ एषु द्वित्वस्य अप्राप्तत्वाद् विधिमुखेन विकल्पः । 'त्रैलोक्यं कर्णिकारश्च वेश्या भूर्जश्च दुःखितः । एवं जातीयकान् शब्दान् विदुः सेवादिकान् बुधाः ॥ एषु लोपशेषत्वान्नित्यप्राप्तस्य द्वित्वस्य निषेधमुखेन विकल्पः । सेव्वा, सेवा। कोउहल्लं, कोउहलं । देव्वं, दइवं । णिहित्तं, णिहिअं । णक्खो, णहो । जण्णुअं, जाणुअं। संखव्व, संखोव । इवार्थे इवपिव-मिव-विव-व्व-एते निपात्यंते । एषु अप्राप्तौ विधानम् । तइलोकं, तइलोअं। कण्णिआरो, कणिआरो। वेस्सा, वेसा। भुजा, भुत्रा । दुक्खिो , दुहिओ। एषु नित्यं प्राप्तं द्वित्वं विकल्पेन निषिध्यते ॥ ५८॥ __सेवादिक शब्दों में विकल्प से द्वित्व हो। इन सेवादिक शब्दों में कहीं लोप से शेष अथवा आदेश स्वरूप न होने से द्वित्व अप्राप्त था और कहीं लोपशेष अथवा आदेशजन्य होने से नित्य द्विस्व प्राप्त था उसका विधि-निषेध-मुख से विकल्प है। तात्पर्य यह कि सेवादिगणपठित कुछ शब्दों में विकल्प से द्वित्व का विधान है और कुछ शब्दों में नित्य प्राप्त द्वित्व का विकल्प से निषेध है । जैसे-सेवा, कौतूहल, दैव, निहित, नख, जानु और इवार्थक पिव मिवादिक-इनमें द्वित्व अप्राप्त था। त्रैलोक्य, कर्णिकार, वेश्या, भूर्ज, दुःखित-इस प्रकार के शब्दों में शेषाक्षर होने से नित्य द्विस्व प्राप्त था, विकल्प से विधि-निषेध होगा। जैसे-(सेवा) अप्राप्त द्वित्व का विकल्प से विधान । सेव्वा । पक्ष में-सेवा। इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना।(कौतूहलम) १४ से औ को ओकार। २ से तलोप। ५९ से उकार । विकल्प से द्वित्व । कोउहलं, कोउहलं । (दैवम्) 'दैवे वा' (१-३८) से ऐ को अइ । विकल्प से वद्वित्व । दहवं । १३ से ऐ को एकार । देवं । (निहितम् )२५ से न कोण। णिहित्तं । २ से तलोप। विडि। (नखः) नको ग । णक्खो। २३ से ख को हकार । णहो। (जानकम) ५० से अकार । २ से कलोप । २५ से णकार । जण्णुअं, जाणुअं। (संख इव) निपात से इव को व आदेश, विकल्प से वद्वित्व । संखच । एवम्-संखप्पिव । संखम्मिव । संखग्विव । पूर्वोक्त सेवादिक तथा पिव आदिक में अप्राप्त द्वित्व विकल्प से हो गया। तथा (त्रैलोक्यम्) ४ से यलोप। 'दैत्यादिष्वइत्' (1+३७) इससे ऐकार को 'अह' आदेश। ५ से रेफलोप । विकल्प से ककार को द्विस्व । यहां यकार का लोप करने से शेष ककार था, अतः नित्य द्वित्व प्राप्त था, इसने वैकल्पिक निषेध कर दिया। तह. लोक्कं । तइलोअं। २ से कलोप। (कर्णिकारः) २ से कलोप। ५ से रेफलोप, शेष कार को नित्य द्विस्व प्राप्त था, विकल्प से निषेध कर दिया। कण्णिआरो। कणि. आरो। (वेश्या) से यलोप। २६ से श को स। वेस्सा, वेसा। (भूर्जा ) ५ से रेफलोप। ५९ से ऊकार को उकार । द्वित्व । भुजा। पक्ष में-२ से जलोप। भा। (दखितः) विसर्ग को सकार मानकर ३ से लोप। २ से तकारलोप। दित्व । दक्खिओ। पक्ष में-२३ से ख को ह। दुहिओ। उक्त इन उदाहरणों में विकल्प से निषेध होने से द्वित्व विकल्प से होगा ॥५॥
नोट-.(२)कगचजतदपया प्रायो लोपः। (२६) शपोः सः । (२३) सप.