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प्राकृतप्रकाशे७ से चकार । २५ सेन को ण आदेश । २ से यलोप। ४२ से ओकार। णिच्छओ। (पश्चिमः) पूर्ववत् । पच्छिमो। 'रस' का उदाहरण-(वत्सः) वच्छो । (उत्साहः) उच्छाहो। (प्स का)-(लिप्सा) लिच्छा । (जुगुप्सा)२ से गलोप। जुउच्छा। लोप प्रायिक है, अतः जुगुच्छा। 'श्व त्स' को सर्वत्र छकार नहीं होता है। अतः निश्चलः, उसिक्तः-इत्यादिक में छादेश नहीं होगा। (निश्चलः)२५ से न को णकार । 'उपरि कापि वक्तव्यो लोपो वर्णान्तरस्य च'। इससे अथवा पूर्वस्थानिक सकार मानकर ३ से सलोप। ६ से द्वित्व । णिचलो। (उरिसक्तः) यहाँ विकल्प से छकार का निषेध होगा। ३ से तकार और त के ककार का लोप होगा। लक्ष्यानुरोध से उकार को ऊकार होगा। बिन्दु, दीर्घ-आ, ई, ऊ से पर वर्ण को द्वित्व नहीं होता है, अतः ऊकार से पर सकार को द्वित्व नहीं हुआ। तकार को द्वित्व । ऊसित्तो । पक्ष मेंछकार । ६ से द्वित्व । ७ से चकार । उच्छित्तो ॥४०॥ ___नोट-नं. (२६) शषोः सः । (५)सर्वत्र लवराम् । (६१) चक्रादिषु । (६) शेषादेशयोर्द्वित्वमनादौ। (३५) सन्धौ अजलोपविशेषा बहुलम् । (५२) सुभिसुप्सु दीर्घः। (२) कगचजतदपयवां प्रायो लोपः। (२५) नो णः सर्वत्र । (१०) इदृष्यादिषु । (३४) कस्कतां खः। (७) वर्गेषु युजः पूर्वः। (४) अधो मनयाम् । (५८) अदातो यथादिषु वा।(१८) पो वः। (४२) अत ओस्सोः ।
वृश्चिके छः ॥४१॥ वृश्चिकशब्दे श्वकारस्य छ इत्ययमादेशो भवति । विश्छुओ (शेष १-१५ सू० स्प०)॥४१॥
वृश्चिके छः-अस्य छः स्यात् । विञ्छुओ ॥४१॥
वृश्चिकशब्द में श्च को म्छ आदेश हो। (वृश्चिकः) १० से ऋ को इकार। 'उदिषुवृश्चिकयोः' से श्व-गत इकार को उकार । विन्छुओ॥४१॥
नोत्सुकोत्सवयोः॥ ४२ ॥ उत्सुक, उत्सव-इत्येतयोः छकारो न भवति । 'श्वत्सप्सां छ' इति प्राप्ते प्रतिषिध्यते । उस्सुओ (२-२ क्लोपः, ५-१ ओ)। उस्सवो (३-१ त्लोपः, ३-५० द्वि०, २-२ प्रायोग्रहणात् लोपो न, शे० पू०)॥४२॥
नोत्सुकोत्सवयोः-एतयोः त्सस्य छादेशो न स्यात् । ऊसुत्रो । ऊसश्रो ॥४२॥
उत्सुक और उत्सव शब्द में 'त्स' को छकार नहीं होगा। (उत्सुकः) ३ से तकारलोप । लक्ष्यानुरोध से उकार को ऊकार । तथा दीर्घ से पर को द्वित्व नहीं होगा । २ से ककार का, उत्सवः में वकार का लोप होगा। उसुओ। (उत्सवः) ऊसओ ॥४२॥
न्मो मः ॥ ४३॥ न्म इत्येतस्य म इत्ययमादेशो भवति । अधो लोपे प्राप्ते । जम्मो (३-५० द्वि०, ५-१ ओ)। वम्महो (२-३९ सू० स्प०)। जन्म, मन्मथः॥४३॥