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________________ प्राकृतप्रकाशे'सभल'मानते हैं। परन्तु 'सफल' का सहल भी होगा, क्योंकि सहल प्रसिद्ध है। इसका मूल सफल ही हो सकता है। मेरे सिद्धान्त से यह उर्दू फारसी शब्द नहीं है। बिन्दु से पर खादिकों को हादेश नहीं होगा। जैसे-शंखः। लंघनम् । मंथरा। किंफलः इत्यादिकों में ह आदेश नहीं होगा। प्रायःपदानुवृत्ति से-अखण्डो, थिरो, अधमो, बहुफलो, अभओ-इत्यादिक में 'ह' नहीं होगा, साधुत्व इनका पूर्ववत् है। ककुदशब्द में द को ह आदेश हो । (ककुदः)द को ह हो गया। कहो ॥२६-२७॥ - नोट-नं. (६३) हरिद्रादीनां रो लः। (४२) अत ओत्सोः (२) कगचजतदपयवां प्रायो लोपः। (५) सर्वत्र लवराम् । (६) शेषादेशयोडैिरवमनादौ। (७) वर्गेषु युजः पूर्वः। (२६) शषोः सः। (२५) नो णः सर्वत्र । (२९) स्तस्य थः। (३) उपरि लोपः कगडतदपषसाम् । प्रथमशिथिलनिषधेषु ढः ॥ २८ ॥ एतेषु थधयोकारो भवति । पढमो (३-३ रोपः, ५-१ ओ)। सिढिलो (२-४३ श् = स्, ५-१ ओ) । णिसढो (२-४३ श् = स् , शेषं पूर्ववत् ) ॥२८॥ प्रथमशिथिलनिषधेषु ढः-एषु थस्य धस्य च ढः स्यात् । पढमो । सिढिलो । निसढो ॥ २८॥ प्रथम-शिथिल-निषध-शब्दों में थकार और धकार को ढ आदेश हो। (प्रथमः) ५ से रेफलोप। थ को ढ आदेश। पढमो। (शिथिलः) २६ से श को स। उक्त सूत्र से ढकार । सिढिलो। (निषधः)२५ से न को ण। २६ से ष को स। उक्त सूत्र से ढकार । णिसढो ॥२८॥ कैटमे वः ॥ २९॥ कैटभशब्दे भकारस्य वकारो भवति । केढवो। (१-३५ ऐ%ए, २-२१ ट् = द,५-१ ओ)॥२९॥ कैटभे वः-अत्र भस्य वः स्यात् । केढवो ॥ २९ ॥ कैटभशब्द में भ को व हो। इससे भ को व हो गया। 'सटाशकटकैटभेषु ढः से ट को ढ हो गया। १३ से ऐ को एकार । केढवो ॥२९॥ हरिद्रादीनां रो लः ॥३०॥ हरिद्रा इत्येवमादीनां रेफस्य लकारो भवति । हलहा (१-१३ इ-अ, ३-३ रोपा, ३-५० द्वि०, ५-२४ आत्वं बाहुल्यात् )। चलणो (२-४२ =ण, ५=१ ओ)। मुहलो (५-२७ ख =ह,५-१ ओ)। जहिटिलो (१-२२सू० स्प०)। सोमालो' (५-१ ओ)। कलुणं (प्रायोग्रहणात् १. नवा, मयूख, लवण, चतुर्गुण, चतुर्थ, चतुर्दश, चतुर्वार, सुकुमार, कुतूहल, उदूखल, उलूखले, ८।१।१७१ । मयूखादिष्वादेः स्वरस्य परेण सस्वरव्यजनेन सह ओद् वा भवति । मोहो, मऊहो इत्यादि । हेम० । पक्षे-सुउमालो॥
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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