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________________ प्राकृतप्रकाशेकोण ।५ से रेफलोप। ६ से वकारद्वित्व । ११ से उकार। दकार, ओकार पूर्ववत् । णिखुदो । (प्रतारितः)दोनों तकारों को दकार। रेफलोप, ओत्व पूर्वक्त् । पदारिदो। (रतिः) दकारादेश। नं. ५२ से इकारदीर्घ । ६० से सुके स का लोप-रदी। एवम् । (प्रीतिः) पीदी। आआदो-आयातः। आअदो-आगतः। आउदी-आवृतिः। संवुदी-संवृत्तिः। सुइदी-सुकृतिः। आइदी-आकृतिः। विउद-विवृतम् । इत्यादिक उदाहरण अव्यवहार्य हैं। कहीं ककारादि लोप से प्रतीति नहीं रहती है, अतः लोप न करके उदाहरण उपयुक्त हो सकते हैं। यह तकार को दकार शौरसेनी मागधी में ही होगा। महाराष्ट्री में तलोप ही होगा ॥७॥ ___ नोट-नं. (२४) आदेयों जः। (२५) नो णः सर्वत्र । (३) उपरि लोपः कगडतदपषसाम् (२६) शपोः सः (४२) अत ओत्सोः । (११) उदृत्वादिषु । (५२) सुभिसुप्सु दीर्घः । (६०) अन्त्यस्य हलः। (५) सर्वत्र लवराम् । (६२) नपुंसके सोबिन्दुः। (५४) अदातो यथादिषु वा । (६) शेषादेशयोर्डिंत्वमनादौ । प्रतिसरवेतसपताकासु'डः ॥ ८॥ एषु शब्देषु तकारस्य डकारो भवति । लोपापवादः । पडिसरो। (३-३ लोपः, ५-१ ओ) वेडिसो। (१-३ अ = इ, ५१ ओ) पडाआ। (२-२ क्लोपः) ॥ ८॥ प्रति वेतसपताकासु ड:-एषु तकारस्य डः स्यात् । पडिहरं, पडिवणं । 'प्रतिशब्दे तकारस्य रेफलोपावपि क्वचित्'-परिट्टियं । पइणा । वेडिसो । पडावा । अत्र बहुत्वग्रहणात् अन्यत्रापि क्वचित् । हरडई । पाहुडं । मडो॥८॥ - प्रति, वेतस, पताका-इन शब्दों में विद्यमान तकार को डकार हो। (प्रतिहतम्) प्रति के तकार को ड हो गया। नं.२ से. हतम् शब्द के तकार का लोप। ६२ से अनुस्वार । पडिहरं। एवम् (प्रतिवचनम् ) त को डा नं. २ से चलोप । २५ से णकार, पूर्ववत् अनुस्वार । पडिवअणं । 'प्रति'शब्द के तकार का कहीं कहीं लोप होता है। प्रयोगानुकूल व्यवस्था माननी चाहिये । (प्रतिष्ठितम्) में प्रतिशब्द के तकार को रेफादेश। नं. ३ से पलोप। ६ से द्वित्व। ७ से टकार । २ से तकारलोप । ३७ अथवा ६२ से अनुस्वार । परिटि। (प्रतिज्ञा) नं.५ से रेफलोप। कहीं तकारलोप होता है, अतः तकारलोप । 'नश पञ्चाशत् सेशको ण आदेश । नं. ६ से ज. द्वित्व । पइण्णा । (वेतसः) इदीषत् पक्क' से अकार, प्रकृतसूत्र से त को डाओव पूर्ववत् । वेडिसो। (पताका) त कोड। नं. २ से कलोप । पहाआ। 'कगचज' सूत्र से मण्डूक प्लुति से प्रायः पद की अनुवृत्ति, प्रायः इन पदों में अर्थात् कहीं अन्यत्र भीत को ड होगा, तो हरीतकी, प्राभृत, मृतक में त को ड होगा। (हरीतकी) 'अन्मु. कुटादिषु' से ई को अकार, प्रकृत सूत्र से त को ड। नं. २ से कलोप। हरबई। १. प्रतिवेतसपताकासु डा-प्रतेरुपसर्गस्य वेतसपताकयोश्च यस्तकारस्तस्य डकारः स्यात् । पडिवाआ। पढिच्छन्दो । पडिसरो। पडिकूलो। इत्यादि । कगजेति (सू० २-२) लोपापवादः। इति केचित्पठन्ति । '. प्रतिसर-ति मामहसंमतः पाठः।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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