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________________ प्रथमः परिच्छेदः । पुरुषशब्दे यो रुस्तस्य उकारस्य इकारो भवति । पुरिसो। (२-४३ प्स् , ५-१ ओ) ॥२३॥ इत् पुरुषे रोः-पुरुषशब्दे रुकारे उकारस्य इकारः स्यात् । पुरिसो (पुरुषः)॥ • पुरुष शब्द में रु के उकार को इकार हो। (पुरुषः).इससे इकार हो गया। नं. २६ सेप को स । ४२ से सु को ओकार । पुरिसो॥ २३ ।। उदूतो मधूके ॥२४॥ मधूकशब्दे ऊकारस्य उकारो भवति । महुअं। (२-२७५ = , २-२ क्लोपः, ५-३० बिन्दुः ) ॥२४॥ उदूतो मधूकादिषु*-मधूकादिषु शब्देषु ऊकारस्य उत् स्यात् । महो। मुक्खो । कुम्हण्डं । सुद्दो । पुत्तो। उद्धं । मुत्ती । भुजं। सुण्णं । उम्मओ। चुण्णं । उण्णा । 'मूल्यताम्बूलयोस्त्वोत्त्वम् । मोल्लं । तंबोलं ॥२४॥ ___मधूकादिक शब्दों में उकार को उकार हो। (मधूकः) इससे उकार हो गया। नं. २३ से धकार को हकार । २ से कलोप। ४२ से ओख । महुओ। (मूर्खः) उक सूत्र से उकार । नं.५ से रेफलोप । ६ से द्वित्व । ७ से ककार।४२ से ओस्व । मुक्खो । (कूष्माण्डम् )'प्मपक्षमविस्मयेषु म्हः' इससे म को म्ह आदेश। प्रकृत सूत्र से उत्व । नं. ५८ से आकार को अकार । ६२ से अनुस्वार । कुम्हण्ड। (शूदः) इससे उकार । नं. २६ से शकार को सकार । ४२ से ओत्व । नं.५से रेफलोप। ६ से द्वित्व । सुहो। (पूर्तः) पूर्ववत् उत्व, रलोप, द्वित्व, ओत्व । पुत्तो। 'पुत्रः' का भी 'पुत्तो' होगा। प्रकरणानुकूल तत्र शब्द की कल्पना कर लें। (ऊर्ध्वम्) पूर्ववत् उकार, नं.५ से रेफ वकारलोप । ६ से द्वित्व, ७ से दकार । ६२ से अनुस्वार । उदं । (मूर्तिः) उकार• रेफलोप, द्वित्व पूर्ववत् । नं. ५२ से इकार को दीर्घ । ६० से सकारलोपामुत्ती। (भूधम्) उत्व, रलोप, द्वित्व पूर्ववत् । नं. ६२ से अनुस्वार । भुज। (शून्यम्) प्रकृत सूत्र से ऊकार को उकार । नं. ४ से यलोप । २६ से सकार । २५ से णकार । ६से हित्व। ६२ से अनुस्वार । सुण्णं । (ऊर्मयः) उक्त सूत्र से उकार । नं.५से रेफलोप। ६ से मकार-द्वित्व । 'जसो वा' इससे ओकार । उम्मओ। (चूर्णम्) उकार, रेफ.. लोप, द्वित्व, अनुस्वार, पूर्ववत् । चुण्णं । (उपर्णा) उण्णा । साधुत्व पूर्ववत् । मूल्य और ताम्बूल शब्द के उकार को ओकार होगा। प्रयोगानुकूल पूर्वाचार्यों का इष्ट वचन है। (मूल्यम्) ओकार हो जायगा। नं.४ से यलोप, ६ से लकारदित्व । ६२ से अनुस्वार । (ताम्बूलम् ) ऊ को ओकार। नं. ५८ से तकारोत्तर आकार को अकार । अनुस्वार 'ययि तदुर्गान्त' से। ६२ से अन्स्यानुस्वार । तंबोलं। दुकूल शब्द में अकार को भकार और लकारद्विस्व विकल्प से हो। सह पठित होने से नहीं अकार होगा वहीं लकारद्वित्व होगा ॥२४॥ अद् दुकूले वा लस्य द्वित्वम् ॥ २५ ॥ * सचीवनीसंमतः पाठः। प्रा.कृ.-२
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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