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________________ द्वादशः परिच्छेदः । २४३ I णिरिति । प्रातिपदिकमात्र से नपुंसकलिङ्ग में जस और शस को णि होता है और पूर्वस्वर को दीर्घ भी होता है। वन अथवा धन शब्द से जस् और शस् प्रत्यय करने पर इस सूत्र से जश्शस् को णि और तत्पूर्ववर्ती नकार के अकार को दीर्घ, तथा 'नो णः ' २- ४२ इस सूत्र से वन और धन के नकार को णकार, वर्णााणि वनानि, धणाणि धनानि ये रूप सिद्ध होते हैं ॥ ११ ॥ भो वस्तिङि ॥ १२ ॥ भूधातोर्भो भवति तिङि । भोमि = भवामि ॥ भोभुवस्तिङि - भू-धातोस्तिङि परतो भो इत्यादेशो भवति । भोति = भवति । भोसि = भवसि । भोमि = भवामि ॥ १२ ॥ १२ ॥ भो - इति । तिङ पर रहते भू धातु को भो यह आदेश होता है । भू को भो आदेश करने पर भोति, भोसि, भोमि ये रूप वर्तमान के एकवचन में भवति, भवसि भवामि के स्थान पर शौरसेनी में प्रयुक्त किए जायँगे। ऐसे ही बहुवचन में भवामः के स्थान पर भी भो आदेश करने पर भोमो ऐसा रूप होगा ॥ १२ ॥ न लुटि ॥ १३ ॥ भूधातोर्लटि भो न भवति । भविस्सदि = भविष्यति ॥ १३ ॥ न लुटि - भूधातोर्लटि परे भो इत्यादेशो न स्यात् । भविस्सदि भविष्यति ॥१३॥ नेति । भूधातु को पूर्वसूत्र से प्राप्त भो आदेश नहीं होता लृट् पर रहते । भविष्यति 'शषोः सः' २-४३ से षकार को सकार, 'अधो मनयाम्' ३-३ से यलोप, 'शेषादेश०' ३-५० से सद्वित्व, 'अनादा०' १२ - ३ से ति को दि, लृट् होने से भो आदेश का प्रकृत सूत्र से निषेध, भविस्सदि ॥ १३ ॥ ददातेर्दे' दहस्स लटि ॥ १४ ॥ दाधातोर्दे आदेशो भवति तिङि, दइस्स इति लुटि च । देमि ददामि । दइस्स = दास्यामि ॥ १४ ॥ ददातेर्दे दइम्स लुटि - दाधातोस्तिङि परतो दे इत्यादेशो भवति, किन्तु लुटि परतो दहस्स इति भवति । देति = ददाति । देसि = ददासि । देमि = ददामि । लुटि तु तिङ्प्रत्यय विशिष्टस्य दाघातोः दइस्स इत्यादेशः, तेन - दइस्स इत्यस्य दास्यति, दास्यसि, दास्यामि इति ॥ १४ ॥ ददातेरिति । दा-धातु को तिड़ पर रहते दे यह आदेश होता है और लूट पर रहते दहस्स आदेश होता है। इससे दा को दे आदेश करने पर देति, देखि, देमि रूप सिद्ध होते हैं । इसी प्रकार लृट् में दहस्स यह रूप होगा ॥ १४ ॥ १. अत्र केचित् सूत्रद्वयं लिखितवन्तः - 'तवस्तेदे' । तच्छब्दस्य तेरे आदेशो भवति । तेदो गदो । तेदं पुच्छ । तेदेण किदं इति । तनः 'दातेदें दस्य लटि' । दाधातोः दकारस्य लटि परतो दे आदेशो भवति । देस्सदि - इति च । का० पा० ।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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