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. प्राकृतप्रकाशेथस्य-करेध = कुरुथ । तथा = तथा । असंयुक्तयोरित्येव, तेनेह न-'अजउत्त, हला सउन्तले आर्यपुत्र-हला शकुन्तले ! अनादाविति किम् ? तस्स, आदिस्थत्वाचात्र ॥३॥ ____ अनादाविति । आदि में अवर्तमान तथा असंयुक्त त एवं य के स्थान पर क्रम से द
और ध अर्थात् त को द और थ को ध होते हैं। त का, मारुतिना-संस्कृतप्रकृतिसिद्ध मातिना में त को द होने से, मारुदिना । मन्त्रितः-'सर्वत्र लवराम्' ३-३ से रलोप, प्रकृत से क्तप्रत्ययावयव त को द, 'अत प्रोत्सो' ५-1 से ओकार, मन्तिदो। थ का, कुरुथ-कृ धातु को 'बुकमा करः' १२-१५ से कर, 'लादेशे वा' ६-३४ से एत्व, प्रकृत से थ को ध, करेध । तथा में प्रकृत से थ को ध, तथा। संयोग-रहित त-थ होने चाहिएँ, अत एव 'अजउत्त'(आर्यपुत्र) में तथा 'सउन्तले' (शकुन्तले!) में संयुक्त होने से दकार नहीं हुमा । अनादौ-ऐसा क्यों कहा ! न कहते तो तस्स%(तस्य) में भी होता । होना इष्ट न होने से अनादो कहा। अतः यहाँ आदिस्य तकार होने से दकार नहीं हुभा ॥३॥
व्याप्ते डः ॥४॥ · व्यागृतशब्दे तस्य डो भवति । पूर्वसूत्रापवादः । वावडो (३२ यलोपः, २-१५ प-च, ५-१ ओ)। व्यापृतः॥४॥
व्यापृते डः-व्यापृतशब्दावयवस्य तकारस्य डकारो भवति । पूर्वसूत्रापवादः । व्यापृतः-'मनादा'विति १२-३ सूत्रेण प्राप्तं दकारम् अपवादत्वेन बाधित्वाऽनेन डकारः, वावडो॥ ४ ॥ . व्यापूते-इति । व्यापृत के त को ड हो। 'अनादावित्यादि-पूर्वसूत्र का अपवाद अर्थात् बाधक सूत्र है। व्यापृतः–'अधो मनयाम्' ३-२ से ब्यागत य का लोप, 'पो व' २-१५ से व, 'ऋतोऽत्' १-२७ सेपको ब, प्रकृत से त को ड, 'अत ओत्सो ५-१से ओ, वावडो॥
पुत्रेऽपि कचित् ॥५॥ क्वचित् पुत्रशन्देऽपि तस्य डो भवति । पुडो (३.३ रलोपः)। पक्षेपुत्तो (३.३ रलोपः, ३-५० तद्वि०, ५.१ ओ) ॥५॥
पुत्रेऽपिकचित्-क्वचिदितिपदेन विकल्पो गृह्यते । पुत्रशब्दावयवीभूतस्यापि तका रस्य विकल्पेन डकारो भवति । डादेशप-पुडो । पक्षान्तरे तु-पुत्तो । पुत्र इत्यर्थः ।।
पुत्रेऽपीति । पुत्र शब्द में भी कहीं त को होता है। कहीं कहने से यह भी सिद्ध होता है कि अन्यत्र नहीं भी होता अर्थात् विकल्प से होता है। पुत्रः-'सर्वत्र' ३-३ से रलोप, उकसेर, 'अतः' ५-१ से भो, पुडो। पचान्तर में-'सर्वत्र' ३-३ से रलोप, 'शेषादेशयो' ३-५० से तद्वित्व, 'अत मोत्' ५-1 से भो, पुत्तो॥५॥
गृध्रसमेषु ॥६॥ ... गृध्रसमेषु ऋकारस्य इर्भवति । गिद्धो (३.३ रलोपः, ३.१ दलोपा, ३.५० धनि०, ३५१ = द्, ५.१ भो)। प्रमः॥६॥