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अथैकादशः परिच्छेदः .
मागधी ॥१॥ मागधानां भाषा मागधी, लक्ष्यलक्षणाभ्यां स्फुटीक्रियते ॥१॥
मागधी-मागधानां मगघदेशवासिनां लोकानां पारस्परिकव्यवहारषुष्टा तैरुच्या माना भाषा मागधीति संज्ञिता भवति । सा च सम्प्रति लक्ष्यलक्षणाभ्यां स्पष्टीक्रियते । परिच्छेदसमाप्तिं यावत् एतत्सूत्रस्याधिकारः ॥ १ ॥
मागधीति । मगध-देश-निवासियों के आपस के व्यवहार में बोली जानेवाली उनकी भाषा मागधी कहलाती है। उदाहरण एवं लक्षणों से उसे स्पष्ट करते हैं। यह परिच्छेद समाप्ति तक अधिकार सूत्र है । अतः प्रत्येक सूत्र से साषित रूप मागधी भाषा के हैं-ऐसा अर्थ समझना होगा ॥३॥
प्रकृतिः शौरसेनी ॥२॥ अस्या मागध्याः प्रकृतिः शौरसेनी'-इति वेदितव्यम् ॥२॥
प्रकृतिः शौरसेनी-मागधीभाषाया अपि प्रकृतिः अर्थात् मूलाश्रयवती पैशाचीवत् शौरसेन्येव भाषा वर्तते-इति ज्ञेयम् ॥ २ ॥
प्रकृतिरिति । मागधी-भाषा की भी पैशाची-भाषा के समान प्रकृति मूल आधार शौरसेनी भाषा ही है । शौरसेनी के नियमों से सिद्ध शब्दों में प्रकृतिप्रत्ययादि के कुछ परिवर्तन द्वारा मागधी नामक भाषा बनती है-ऐसा समझना चाहिए ॥ २॥
पसोः शः॥३॥ पकारसकारयोः स्थाने शो भवति । माशे । विलाशे। (स्प०)। माषः । विलासः ॥३॥
षसोःशः-शौरसेनीनियमानुसारं सिद्धानां शब्दानां मध्ये वर्तमानयोः षकारसकारयोः मूर्धन्यदन्त्ययोः स्थाने तालव्यः शः = शकारो भवति । (माषः)= माशे । (विलासः)= विलाशे ॥३॥
षसोरिति । शौरसेनी के नियमों द्वारा साधित शब्दों में वर्तमानमूर्धन्य और दन्त्य प-स के स्थान पर तालम्य शकार होता है। (माषः) प्रकृत सूत्र से 'प' के स्थान में 'श', 'अत इदेतो' ११.१० इससे एकार, माशे। इसी प्रकार (विलासः) का विलाशे॥३॥
जो यः॥४॥ जकारस्य यकारो भवति । यायदे (प्रायोग्रहणात् २-२ यलोपोन, १२-२त् दू)। जायते ॥४॥
१. प्राकृतस्याप्पत्र प्रहणं वेदितव्यम् । .