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________________ y. नवमः परिच्छेदः। अभिप्रायपैशुन्यम् । एवर्येषु उ.इति निपातः प्रयुज्यते । उ अम्ह ण तेण कव्वं । उ अस्माकं न तेन कार्यम् । अत्र तस्य प्रयोजनेऽपि प्रयोजनं नास्तीति प्रषिक्षेपो बोध्यते । उसो एस इह कुदो आश्रदो । उ स एष इह कुत आगतः। अत्र उशब्दः तदागमने आश्चर्य जनयति । सहि उ विलक्खो व्य । सखि ! उ विलक्ष इव । अत्र लक्ष्यजननकारणाभिप्रायस्य सूचना उशब्देन द्योत्यते ॥ ___ उ-इति । पादिक अर्थों में न इस निपात का प्रयोग होता है। क्षेप = तिरस्कार । विस्मय = आभयं। सूचना अभिप्राय का संक्षेप कहना। क्षेप-'उ अम्ह न तेण कर्ज। उ-मुझे उससे कोई कार्य नहीं है। कार्य रहते हुये भी कार्य का निषेध करना तिरस्कार है। उ-पद से उसका बोध होता है। आश्चर्य-'उसो एस इह कुदो आदो'। यहाँ उशब्द उसके आगमन में भाषर्य को कहता है। सूचना-'सहि उ विलक्खो वहे सखि ! वह विलन-सा हो गया' यहाँ वैलपयोत्पादक कारण के अभिप्राय की सूचनामात्र उशब्द से प्रकाशित होती है। किणो प्रश्ने ॥९॥ किणो इत्ययं शब्दः प्रश्ने निपातसंज्ञो भवति । किणो धुन्वसि (८५७ यन्व, ७-२ थास् =सि)। किणो हससि (किणो स्प०, ७-२ सिप - सि)। किन्नु धूयसे । किन्नु हससि ॥९॥ किणो प्रश्ने-किणो-इति निपातः प्रश्नेऽर्थे वर्तते। सुहश्र किणो कहेसि मं। सुभग! किं कथयसि माम् । अत्र किणो-इति प्रश्नार्थवाचकः । कोस-किमर्थे वर्तते । किणो इति तु प्रश्ने। इत्यनयोः अर्थाभेदे अर्थभेदो न कर्तव्यः । तथा चोक्तम्-'सम्भवत्येकवाच्यत्ये वाक्ये भेदश्च नेष्यते ॥९॥ किणो-इति । किणो यह निपात प्रभ अर्थ में है। 'सुहा किणो कहेसि महे सुभग मुझे क्या कहते हो? यहाँ किणोशब्द प्रश्नार्य में है। कीस यह किमयं में है और किणो यह प्रम में है। इस प्रकार इनका परस्पर अर्थ में अभेद ही है। अर्थ में भेद नहीं करना । कहा भी है कि-एक वाच्य रहने पर वाक्य भेद नहीं करना-इति ॥९॥ अब्बों दुःखसूचनासम्भावनेषु ॥१०॥ ___ अब्बो इत्ययं शब्दो दुःखसूचनासम्भावनेषु निपातसंज्ञो भवति । ' दुःखे-अम्बो कजलरसरखिएहिं अच्छीहि (अब्बो स्प०, कजलरसेति संस्कृतसमः शब्दः, रजितेत्यस्य २-२ तलोपः, ५-१२ अ%ए, ५-५ मिस्-हिं। भन्स्ये २-३० क्ष= छ, ३-५० छद्वि०, ३-५१ च = छ्, ४२० स्त्रीत्वे, ५-५ मिस्-हिं)। सूचनायाम्-अब्बो अवरं विअ (२२५५-ब, ५-३ अमोऽकारलोपः, ५-१२ मबिं०, शे०९-३ सू० स्प०)। सम्भावने-मन्यो गमिव अतुं (३-१ दलोपः, ३-५० तद्वि०, ४-१२ १.किणो कीस किमु परिप्रश्ने। का० पा०। २. अथो अन्यो, यो। अथो दुःखसूचनामाषणेषु । का० पा। ३. प्राकृते विचनामावात बहुवचनम् ।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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