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प्राकृतप्रकाशेवर्तते । श्री अविणयअत्तणिला। श्री अविनययनवती। पत्र -शब्दः पूर्वकृतस्वकीयाकरणीयसूचकत्वं द्योतयति। श्रोण पसण्णम्हि । श्रोकिमिति न प्रसबाहमभवम् इति पश्चात्तापं द्योतयति । ओ अणुणेमि । मो अनुनयामि । अत्र विकल्पार्थ भोशन्दः ॥४॥
ओ-इति । सूचनादिक अर्थों में 'भो' इस निपातसंज्ञक का प्रयोग होता है। सूचना-अभिप्रायपूर्वक किंचिन्मात्र वस्तु की सूचना । पश्चात्ताप-पछताना। विकरूपयह अथवा यह-इस प्रकार पालिक विधि विकल्प कहाता है। इन अर्थों में ओ यह निपात होता है। ओ अविणयजत्तणिला । अविनय में यावती थी। यहाँ पूर्वकृत या के अकरणीयस्व की सूचना है। ओ ग पसण्णाम्हि । ओ मैं क्यों न प्रसन्न हो गयी। यहाँ प्रसन्न होने के पश्चात्ताप को यह सूचित करता है। ओ अणुणेमि । अच्छा यदि नहीं मानता है तो मैं पैरों में पढूंगा-अनुनयविनय करूंगा। यहाँ विकल्पार्थक ओशब्द हैं॥४॥
___इरकिरकिला अनिश्चिताख्याने ॥५॥ इर, किर, किल इत्येते शब्दा अनिधिताल्याने निपातसंबका भवन्ति । पेक्ख इर तेण हदो (आदिमः ६-५१ सू० द्रष्टव्यः। तेण ५-६ तदोऽन्त्यलोपः, ५-१२ एत्वं, ५-४ टाण'। अन्त्यः ४-६ हनोऽन्त्यलोपः, १२-३ तद, ५-१ ओ)। अज किर तेण ववसिओ। (व्यवसित इत्यत्र ३-२ यलोपः, प्राय इति २-२ वलोपो न, २-२ तलोपः, ५-१ ओ, शे० स्प०)। अअंकिल सिविणओ (२-२ यलोपः, ४-१२ मबिं०, शे० स्प० । अन्त्यं १-३ सू० द्रष्टव्यम्) । प्रेक्षस्व किल. तेन हतः। अद्य किल तेन व्यवसितः । अयं किल स्वप्नः ॥५॥
इर-किर-किला अनिश्चयाख्यानेषु'-इर-किर-किलाः शब्दाः अनिश्चयस्य अस. म्यगर्थस्य आख्याने प्रतिपादने प्रयुज्यन्ते । इह इर दिट्टो दइयो। इह किस दृष्टो दयितः। अत्र इरशन्दः स्थानदर्शनादेव निश्चितार्य वकि, इति असम्यगेव निश्चया. ख्यानम् । एत्य किरालिंगियो । अत्र किलालिशितः। अत्र किरशब्दः स्थानस्यालिश नस्य असम्यगर्थतां द्योतयति। " किल रमित्रो। न किल रमितः । अत्र किलशब्दः रमितार्थप्रतिषेधस्य अपरिस्फुटतां कथयति ॥ ५ ॥
इरेति। इर-किर-किल ये शब्द अनिमय सम्यग् बर्य के प्रतिपादन में प्रयुक्तहोते हैं। इह इर दिवो दइयो। यहाँ पर प्रिय को देखा था। यहाँ पर किक (इर)-ब्द स्थानदर्शन से ही निमित अर्थ को कहता है, अतः सन्द के प्रयोग से असम्यक् प्रकार से निचय को कहता है। एत्य किरालिंगियो । यहाँ पर मालिान किया गया। वहाँ किरमान्य स्थानस्थ मालिनगपरिस्फुटार्य को सूचित करता है।जकिक मित्रो। यहाँ किलशम्द रमणप्रतिष को अपरिस्फुट सूचित करता है। बाद-रमणप्रतिष को स्फुटतया नहीं कहता है।५॥
१. तेनेत्यत्र २-४२ इति णामात्रमिति केचित् । १. संजीवनीसंमतः पा .
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