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________________ अष्टमः परिच्छेदः। . १९७ (तक्षेरंपवच्छौ।) तक्षेरंपवच्छौं'-तक्षेः रंपवच्छ इत्यादेशौ स्तः । तक्ष, त्वक्ष तनूकरणे । रंपइ, वच्छइ । तक्ष्णोति, तक्षति वा॥ तक्षेरिति । तक्ष धातु को रंप-वच्छ आदेश हो । तनूकरण अर्थ में तक्ष धातु है। रंप आदेश होने से रंपह, एवं वच्छ आदेश में वच्छइ । तषणोति तक्षति वा ॥ खिदेर्विसूरः ।। ६३ ॥ खिद दैन्ये, अस्य विसूरो भवति । विसूरह (स्पष्टम् । अत्रोदाहरणभूते प्राकृतपद्यखण्डे 'विरहेण, बाला' इत्येतौ शब्दो संस्कृते प्राकृतसमौ, शेषो महिलावत् ? )। विरहेण विसूरई बाला ।। ६३ ॥ खिदेविसूरः-खिद्-धातोर्विसूर इत्यादेशः स्यात् । विसूरइ, विसूरेइ । खिद्यते । अत्रापि बहुलग्रहणानुवृत्तेः 'खिज्ज' इत्यादेशः । खिन्नइ । वसन्तराजस्तु देवादिकत्वात् श्यनि, 'त्यध्यद्यां चछजाः' इति जकारे, 'शेषादेशयो रिति जकारद्वित्वे खिन्नइ-इत्याह । तभये क्तप्रत्यये खिजिअं नैव सेत्स्यति ॥ ६३ ॥ खिदेरिति । खिदैन्ये, खिद धातु को विसूर आदेश हो। 'लादेशे वा' से विकल्प से एकार, विसूरेइ । पक्ष में विसूरह । विद्यते । इस सूत्र में भी बहुल-पद की अनुवृत्ति करके बहुलग्रहण से खिद को खिज आदेश होगा। खिजइ । क्तप्रत्यय में खिजिअं होगा। वसन्तगज खिदधातु से श्यन् , 'त्यथ्यद्यां' से जकार, 'शेषादेशयो' से द्वित्व, खिजइ-मानते हैं, उनके मत से क्तप्रत्ययादि में खिज आदेश न होने से खिजिअं नहीं होगा ॥३॥ . क्रुधेर्जूरः ॥ ६४ ॥ क्रुध कोपे, अस्य जूरो भवति । जूरई (पू० ति, त= इ, शे० स्प०) । धेर्जूरः-धधातोर्जूर इत्यादेशः स्यात् । क्रुध कोपे । जूरइ । ऋध्यति ॥६४॥ अधेरिति । कृध धातु को जूर आदेश हो। ऋध कोप करने के अर्थ में है। जूर आदेश । जूरइ, क्रुध्यति ॥ ६॥ . चर्चेश्चम्पः ॥६५॥ चर्च अध्ययने, अस्य धातोश्चम्पो भवति । चम्पई (स्पष्टम्) ॥६५॥ चर्चेश्चरः-चर्चि-इति ण्यन्तस्य निर्देशः। चर्च अध्ययने, ण्यन्तस्य चर्चधातोःचर इत्यादेशः स्यात् । चरइ । चर्चयति । वक्तीत्यर्थः । चरिअइ, चरित्नइ, चर्च्यते॥ चर्चेरिति । चर्चि यह ण्यन्त का सूचक है । चर्च धातु पढ़ने के अर्थ में है। ण्यन्त चर्च धातु कोचर आदेश हो। चरइ। चर्चयति अध्यापयति । विचारता है, पढ़े हुए पाठ को फिर से विचारता है। कर्म में प्रत्यय करने पर 'यक इअइजौ' से इअइज आदेश । चरिअइ, चरिजइ । चर्च्यते ॥ ६५ ॥ ... १. भामहे नेदमुपलभ्यते सूत्रम् । । २. खियति। ३. झूठ। ४. क्रुद्धयति । ५. चर्चयते। ६. संजीवन्यादिसंमतः पाठः । . Hth
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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