SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमः परिच्छेदः। १६ देशः स्यात् । वचइ । व्रजति। णश्च । नृत्यति। ननु कथं 'ण'मिति ? नट नृत्तावित्यस्य नांव्यमिति, तस्मादिदं स्यात् ॥ ४७ ॥ बो-इति । गत्यर्थक वजधातु को, पदार्थामिनयार्थक नृत धातु के अन्त्य वर्णको . '' यह वादेश हो। बचाइ । 'सर्वत्र लवराम्' से रेफलोप । ब्रजति । उक्त सूत्र से '' आदेश । 'नो णः' से णकार । णचाइ । नृत्यति । यदि नृत को सर्वत्र च आदेश होता है तो गट्ट यह कैसे होगा? उत्तर-यहाँ नट नृत्ती, नृत्यर्थक नट जातु है । 'ऋहलोयॆत्', 'अत' उपधाया।-एवं यह नाट्यशब्द का है। 'अधो मनयाम' से यलोप। 'शेषादेशयोः' से द्विस्व । 'नो णः सर्वत्र से णकार । 'अदातो यथादिषु वा से आकार को अकार । 'भो बिन्दुः' से अनुस्वार । गट्टं। नाव्यम् ॥ ४७॥ . . युधिबुध्योः ॥४८॥ • युध सम्प्रहारे, बुध अवगमने, अनयोरन्त्यस्य झो भवति । जुज्झइ । बुज्झइ' (ध = झ्, आदेशत्वात् ३-५० झद्वि०,३-५१ झ् =ज,शे०स्प०)। .. युधिबुधिगृधिसिधिक्रुधां ज्झा-युध्यादीनामन्त्यस्य ज्मः स्यात् । युध संप्रहारे । जुज्मइ, युध्यते । बुध अवगमने। बुज्मइ, बुध्यते। गृधु अभिकाक्षा. याम् । गिज्झइ, गृध्यति । सिधु सन्धौ । सिज्मइ, सिध्यति । क्रुध कोपे। कुज्मइ, कभ्यति ॥ ४८॥ युधीति । युधादिक धातुओं के अन्त्य वर्ण को आदेश हो । युध पातु मारना युद्ध करने के अर्थ में है। ध को जम आदेश। 'आदेयों जः' से जकार । जुझाइ । युध्यते । बुध धातु समझने के अर्थ में है। पूर्ववत्-बुझाइ । बुध्यते । गृप धातु अत्यन्त आसक्ति चाहने के अर्थ में है । जन आदेश । 'अडादेशा बहुलम्' से इकार । गिज्याइ । गृध्यति । सिप धातु मिलना, या सिद्ध करने के अर्थ में है। सिझइ । सिद्धयति । क्रय धातु क्रोध करने के अर्थ में है । 'सर्वत्र लवराम्' से रेफलोप । कुज्झाइ । क्रुध्यति ॥४॥ ___ रुधेन्र्धम्भौं ॥ ४९ ॥ ___ रुधिर् ( अस्य धातो)रन्त्यस्य न्ध-म्भौ भवतः। रुन्धर, रुम्भई (इरित् , ध् = पर्यायेण न्ध, म्भ, ७-१ ति =इ, ४-१७ वर्गान्त०)॥४९॥ रुन्धधम्भौ-रुध्-धातोरन्त्यस्य ध-म्भ इत्यादेशौ स्तः। रुन्धइ, रुम्भह । रुणद्धि । 'रुधो धम्भो कचिव क्वचिज्मो भावकर्मणोः । तेन दिण्णादयः' इति क्तन सह रुद्धादेशः, रुद्धशब्दाद् वा । रुद्धो, रुद्धः । रुज्मा , रुध्यते ॥ ४९.॥ ___रुधेरिति । रुध धातु के अन्त्य वर्ण को न्ध म्भ आदेश होते हैं । रुन्धई । और जहाँ म्भ आदेश होगा वहाँ सम्भह । रुध धातु आवरण = ढकना, रुधना, गेंसना अर्थ में । रुणद्धि । कहीं-कहीं रुध धातु को न्ध म्भ आदेश नहीं होते और कहीं पर भावकर्म में उस आदेश होता है। क्तप्रत्यय के परे 'केन दिण्णादयः' से प्रत्यय के सहित १. युज्यते, बुद्धयते। २. संजीवनी-सुबोधिनीसंमतः पाठः। ३. रुधेन्र्धस्सौधस्सइ । का. पा०। ४. अयं पाठो न लभ्यते। ५. रुणद्धि, रुन्धे।।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy