SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमः परिच्छेदः १८७ उत्समोरिति । उत्पूर्वक, संपूर्वक बेष्टधातु के अन्स्य वर्ण 'ट' को द्विलकारात्मक आदेश हो। उधेवइ । 'उपरि लोपः कगडतद.' इससे दलोप। 'शेषादेशयो' से वकारद्विस्व । उद्वेष्टते । एवं संवेल्लइ, संवेष्टते । प्रम यह है कि एक लकारात्मक '' आदेश पढना था, 'शेषादेशयो' सेल को द्वित्व करने से द्विलका. रात्मक हो जाता।फिर द्विलकारात्मक 'ब' आदेश ग्रहण व्यर्थ होकर यह सूचित करता है कि संयुक्त वर्ण के स्थान में विहित भन्स्य वर्ण आदेश को द्वित्व नहीं होता है। अतः वेढह में 'ढ' को द्वित्व न होगा ॥११॥ _ रुदेवः॥४२॥ रुदिर् अस्य धातोरन्त्यस्य वो भवति । रुवई' (इरित्, व्, ७-१ ति=)॥४२॥ ___ रुदो व-दोऽन्त्यस्य दस्य वः स्यात् । रुवइ । केचित्तु-रोवइ, इत्युदाहरन्ति । तन्मते 'अडादेशा बहुल'मिति उकारस्य ओकारः । रुइरा । 'तून इर शीले' इति इरः। 'पादीतो बहुल मिति प्राप्रत्ययः । रोदनशीला ॥४२॥ रुदो व इति । रुदधातु के अन्त्य दकार को वकार आदेश हो । रुवइ । रोदिति। कोई आचार्य रोवइ प्रयोग करते हैं, उनके मत से 'अडादेशा बहुल्म्' से उकार को ओकार होगा । रुहरा । 'तृन् इर शीले से इर। 'कगचज०' से वलोप। 'सन्धौ अज् लोप.' से अकारलोप । 'आदीतो बहुलम्' से आकारप्रत्यय । 'कचिदपि लोपः' से अलोप । रोदनशीला ॥४२॥ उदो विजः ॥ ४३ ॥ उत्पूर्वस्य विजेरन्त्यस्य वकारो भवति । उव्विवई (२-२ तलोपः, ३-५० वद्वि०, शे० पू० स्प०)॥४३॥ उदो विजे:-उदुपसर्गात्परस्य विजेरन्त्यवर्णस्य वकारः स्यात् । उव्वेवइ, उब्वेवए । 'अडादेशा बहुल'मिति.एकारः। उद्विजते ॥ ४३ ॥ ___ उद इति । ओविजी भयचलनयोः, उत् उपसर्ग से पर भयचलनार्थक विज धातु के भन्स्य वर्ण को वकार हो । इससे व आदेश । 'अडादेशा बहुलम्' से एकार । 'उपरि लोपः कगर' से दलोप । शेषादेशयोईिस्व.' इससे वकार को द्वित्व । उब्वेवइ । 'सतिपो.' से ए। उम्वेवए । उद्विजते ॥१३॥ . वृधेः॥४४॥ वृधु वर्धने, अस्य धातोरन्त्यस्य दो भवति । षड्ड (१-२७ ऋ अ, ह, तस्य आदेशत्वात् ३-५० वि०, शे० पू०)॥४४॥ वृधेड्ढेः-वृधेरन्त्यस्य धस्य ड्ढःस्यात् । ऋतोऽत् ।वड्ढइ, वड्ढए । वर्धते ॥४४॥ एपेरिति । वृष वृद्धौ, वृषधातु के भन्स्य को 'ई' होय । 'ऋतोऽत्' से अकार । बड्या पर्वतेna १. रोदिति । २. संजीवनीसंमतः पाठः। ३. उद्विजते। ४. संजीवन्यादिसंमतः पाठः। ५.बईते।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy