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________________ अथ पञ्चमः परिच्छेदः अत ओत्सोः ॥ १ ॥ अकारान्ताच्छब्दात्परस्य सोः स्थाने ओत्वं भवति । वच्छो (१-३२ । ३-३० । ३-३१ सूत्रेषु स्पष्टम् ) । वसहो (१-२७ । २-४३ सू० स्प० ) । पुरिसो ( १ - २३ सू० स्प० ) । वृक्षः, वृषभः, पुरुषः ॥ १ ॥ अत ओत् सोः - अकारान्तात् प्रातिपदिकात् परस्य प्रथमैकवचनस्य सुप्रत्ययस्य प्रकारादेशः स्यात् । इंदो । चंदो । करहो । भत्तारो । कत्तारो । वच्छो । वसहो । पुरसो । 'परस्य क्वचिदीकारात् सोराकारः प्रवर्तते । भणन्तीचा, हसंतीचा ॥ १ ॥ पूर्वार्द्ध के ये चार परिच्छेद अत्यन्त उपयोगी हैं, क्योंकि स्वर-व्यञ्जनों के आदेश कहे हैं । अतः शब्दस्वरूप के ज्ञान होने में साधक हैं और सुप्तिज्ञान तो वाक्य से स्वतः प्रतीत हो जायगा । उत्तरार्द्ध के ( ५ ) पञ्चम परिच्छेद में सुब्विधि है । ( ६ ) षष्ठ में तिविधि । (७) सप्तम में धातुविधि । ( ८ ) अष्टम में निपात । अतः इनका ज्ञान अतिसरल है । किन्तु पूर्वार्द्ध के प्रयोगों का ज्ञान स्वरूपपरिवर्तन के कारण दुर्बोध होता है । अत एव सर्व - साधारण को सरलतया बोध होने के लिये मैंने अनुगम करके प्राकृतबोध के लिये केवल ( २८ ) अट्ठाईस तथा व्यापक बोध के लिये (२२ ) बाईस और एवं पचास सूत्रों से उत्तम प्राकृत, तथा उससे किचिन्मात्र विभिन्न पाली का बोध होने का उपाय निकाला है । यह मेरा पन्द्रह वर्ष का 'अभिधान. राजेन्द्र' (जैनइन्साइक्लोपीडिया) बनाते समय प्राकृत जैनागमों के देखने का अनुभव है। उन सूत्रों का अनुगम करके उदाहरणों पर मैंने दिखा दिया है । और कौन-कौन सूत्र पूर्वार्द्ध के (४) परिच्छेदों में कितनी बार प्रयोगों में उपयुक्त हुआ है यह संख्या भी दे दी है । अस्तु अकारान्त प्रातिपदिक से पर सु को ओकार आदेश हो । (चन्द्रः ) सु को ओकार । चंदो । २+७+४+२८+२३+१२+५+९ से सब प्रयोग सिद्ध होते हैं। ( कृष्णः ) कहो । ( भर्ता ) ॠत आरः सुपि' इससे आर आदेश । प्रकृत सूत्र से ओकार । भत्तारो । ( कर्ता ) कत्तारो । ( वत्सः ) वच्छो । ( वृषभः) वसहो । ( पुरुषः ) 'इरपुरुषे रो:' से इकार | पुरिसो । कहीं पर ईकार से पर सु को आकार आदेश होता है । ( भणन्ती ) भणती ( हसन्ती ) हसंतीआ ॥ १ ॥ जश्शसोर्लोपः ॥ २ ॥ अत इत्यनुवर्तते । अकारान्तस्यानन्तरं यौ जश्शसौ तयोर्लोपो भवति । वच्छा सोहंति । 'जश्शस्ङस्यांसु दीर्घ' इति दीर्घे कृते पश्चालोपो जसः (१-२७ ऋ = अ, ३-३१ छत्वविकल्प', ३-५० द्वि०, ३-५१ १. वत्सशब्दप्रयोगे तु ३ - ४० त्स = छ ।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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