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________________ . प्राकृतप्रकाशेप्रकाश की टीका करते हुए जो प्रयोग आया उसका साधुस्व उक्त सूत्रों से मैंने दिखाया है। और जिस सूत्र का उपयोग प्राकृतप्रकाशान्तर्गत उदाहरणों में आया है उसकी संख्या सूत्र के साथ दे दी है तथा तरसंख्यानुरूप ही सूत्रक्रम है। स्वल्प परिश्रम से मेरे बनाये हुये 'प्राच्यकरण' से पाली और प्राकृत में उत्तम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। उसमें दोनों भाषाओं के लिये केवल उपयुक्त सूत्र हैं और उदाहरण सैकड़ों हैं, जिससे परिपक बोध तत्तद्भाषा का हो जायगा । अस्तु । (३) तीसरा देशी शब्द स्वरूप में है। उन देशी शब्दों का प्रयोग, जैसे-अन्तः लापिका, बहिर्लापिका, गुप्ताशुद्धि आदि का काचित्क प्रयोग होता है वैसे ही देशी शब्दों का प्रयोग होता है । उनका जैन-बौद्धागों में प्रयोग नहीं के समान ही है। . प्राकृत में यह साधारण नियम है कि-एकार १ ऐकार २ स्फ ३ प्य ४ ३५ ऋ६ ल ल ८ प्लुत ९ श १०१ ११ अन्त में विसर्ग १२ चतुर्थी विभक्ति १३, चतुर्थी के प्रयोग में षष्ठी होती है, जैसे-'णमोत्थु देवाहिदेवाणं' देवाधिदेवेभ्यः नमोऽस्तु । अन्त में हल १४ अलग अपने वर्ग के संयोग से अतिरिक्त डकार १५ प्रकार १६ . नकार १७ और द्विवचन १८ ये अठारह प्राकृत में नहीं होते हैं। आत्मनेपद और परस्मैपद का भेद नहीं अर्थात् आत्मनेपदी धातु का परस्मैपद में भी प्रयोग होता है, . तथा परस्मैपदी धातु का आत्मनेपद में भी प्रयोग होता है। प्राकृत में आत्मनेपद परस्मैपद का कोई भेद नहीं है और पुंलिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग, नपुंसकलिङ्ग का कोई भेद नहीं है, जैसा संस्कृत में भेद है। जैसे-कुलशब्द नपुंसकलिङ्ग ही होगा पुंलिङ्ग नहीं होगा। परन्तु प्राकृत में यह नियम नहीं है । इत्यादि ॥ ३३॥ इति श्री म०म० मथुराप्रसादकृती प्राकृतप्रकाशस्य प्रदीपनामक हिन्दीव्याख्यायां चतुर्थः परिच्छेदः ।
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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