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प्राकृतप्रकाशे९ से ऋ को अकार । 'कृष्णे वा' (१+६०)पकार-णकार का विप्रकर्ष, षकार में तस्वरता । कसणओ। पक्षे-कसणो। एवम् (चन्द्रकः) रेफ-ककार का पूर्ववत् लोप । चन्दओ। पक्ष में चन्दो। स्वार्थ में विकल्प से इल्ल उल्ल हों; और उससे क-प्रत्यय विकल्प से हो । (सत्यम् )३२ से त्य को चकार । ६ से द्वित्व । सञ्चं । इल्ल-प्रत्यय होने पर सच्चुल्लं । लोकव्यवहार की बोलचाल में 'सचुला प्रयोग होता है । अतः उल्लप्रत्यय होने पर सच्चल्लं । कप्रत्यय होने पर सचिल्ल। पुंल्लिङ्ग में सच्चो, सञ्चुल्लो। एवम् (करभः) २३ से भ को हकार । करहो। उल्लप्रत्यय होने पर करहुल्लो । कप्रत्यय होने पर करहुल्लओ। एवम् (भ्रमरः) भमरो, भमरुल्लो, भमरुल्लओ। रेफ-ककार का लोप। ओकार पूर्ववत् जानना । ३५ से इल्ल, उल्ल प्रत्यय होने पर प्रातिपदिक के अकार का लोप सर्वत्र जानना। स्वार्थ में कप्रत्यय होता है और ड-प्रत्यय भी होता है और उस ड-प्रत्ययान्त से कप्रत्यय विकल्प से होता है। (पुत्रः)५ से रेफलोप। ६ से द्वित्व । पुत्तो, पुत्तडो, पुत्तडओ। (वत्सः) ६४ से त्स को छ। ६ से द्वित्व । ७ से चकार । वच्छो, वच्छडो, वच्छडओ। (हस्तौ) २९ से स्त को थकार । द्वित्व, तकार ६+७ से । द्विवचन को वहुवचन । हत्था, हत्थडा, हत्थडआ। 'कहीं पर स्वार्थ में द्वित्वापन्न लकार भी होता है।' (एकः) ४१ से विकल्प से ककारद्वित्व । एको, एक्को, एकल्लो, एकको, एकाकी। (नवः) २५ से न कोण । णवो, णवल्लो। उक्त इल्लादिक प्रत्यय पाणिनि ने जिन-जिन अर्थों में क-प्रत्यय कहा है उन-उन अर्थों में होते हैं । जैसे-अज्ञात, कुत्सित, अल्प, हस्व, अनुकम्पा और संज्ञा अर्थ में होते हैं ।
नोट-नं. (५) सर्वत्र लवराम् । (२) कगचजतदपययां प्रायो लोपः। (६२) अत ओत्सोः। (९) ऋतोऽत् । (३२) त्यथ्यधां चछजाः। (६) शेषादेशयोत्विमा नादौ। (२३) खघयधमां हः। (३५) सन्धौ अज्लोपविशेषा बहुलम् । (६४) श्वत्सप्सां छः । (७) वर्गेषु युजः पूर्वः। (२९) स्तस्य थः। (२५) नो णः सर्वत्र ।
विद्युत्पीताभ्यां वा लः ॥ २६ ॥ विद्युत्पीतशब्दाभ्यां परतः स्वार्थे लप्रत्ययो भवति । विज्जू (३२७ छु = , ३-५० जद्वि०, ५-१८ दीर्घः)। विजुली ( ईबन्तः स्त्रियां, शे० पू०)। पीअं (२-२ त्लोपः, ५-३० वि०)। पीअलं' (स्प०) ॥२६॥
विद्युत्पीतयोलः -एतयोः स्वार्थे लप्रत्ययो वा स्यात् । विजुली, विजू । पीअलं, पीअं ॥ २६ ॥
विद्युत् और पीत शब्द से स्वार्थ में ल-प्रत्यय विकल्प से हो। (विद्युत्) ३२ से घको जकार । ६० से अन्त्य त् का लोप । ६ से जकारद्वित्व । विजुली । ५२ से उकार• दीर्घ । विजू । (पीतम)२ से तलोप, ल-प्रत्यय । पीअलं, पीअं ॥ २६ ॥
- वृन्दे वो रः ॥२७॥ वृन्दशब्दे वकारात्परः स्वार्थे रेफो वा प्रयोक्तव्यः। वन्दं (१-२७ १. वेति सार्वत्रिको न। २. क० पु० विद्युत्, पीतवर्ण इत्यर्थः । अ० पा० । ३. संजीवन्यादिसंमतोऽयं पाठः।