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भंगार के साथ-साथ सत्प्रेरणा देने वाले परोपकार, मित्रता, साहस, प्रेम, स्नेह, धैर्य, उदारता, कृतज्ञता, विनय, क्षमा जैसे नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित मुक्तकों का समावेश कर कवि ने मानव मात्र के कल्याण का पथ-प्रदर्शित किया है। यथा - उपकार व कृतज्ञता को प्रतिष्ठापित करने वाली यह गाथा दृष्टव्य है
बे पुरिसा धरइ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी । उवयारे जस्स मई उवयरिअंजो न पम्हुसइ ।।(गा. 45 )
अर्थात् – यह पृथ्वी दो पुरुषों को ही धारण करती है, अथवा दो पुरुषों द्वारा ही यह पृथ्वी धारण की गई है। (पहला) जिसकी उपकार में मति है, तथा (दूसरा) जो किसी के द्वारा किये गये उपकार को नहीं भूलता है।
___ वस्तुतः कवि जयवल्लभ ने वज्जालग्ग में इन नैतिक मूल्यों की स्थापना कर अच्छे व बुरे जीवन को बहुत ही सहज व सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। यही नहीं स्वस्थ समाज के निर्माण में आर्दश नारी की अहम भूमिका होती है। इस बात का भी कवि को पूर्ण आभास था। नारी के गरिमामय उज्जवल चरित्र की कवि ने बड़ी ही मार्मिक प्रस्तुति की है। यथा
पत्ते पियपाहुणए मंगलवलयाइ विक्विणन्तीए । दुग्गयघरिणी कुलबालियाए रोवाविओ गामो ।। (गा. 458)
अर्थात् - किसी प्रिय अतिथि के आ जाने पर कुल की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए अपने विवाह का मंगल कंकण बेचती हुई गरीब गृहिणी द्वारा सारा गाँव ही रुला दिया गया।
उपर्युक्त गाथा में नारी के आदर्श रूप की प्रस्तुति के साथ दरिद्रता व विवशता का भी हृदयस्पर्शी चित्र अंकित हुआ है। प्रकृति चित्रण से सम्बन्धित विविध गाथाओं का संकलन भी इस मुक्तककाव्य में हुआ है। छ: ऋतुओं का नैसर्गिक चित्रण है। स्पष्ट है कि वज्जालग्ग जीवन के