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________________ सुभाषित, प्रकृति-चित्रण, ग्रामीण - सौन्दर्य, दरिद्रता आदि से सम्बन्धित मुक्तकों का भी संकलन है। तत्कालीन सामाजिक परम्पराओं का भी इनमें चित्रण मिलता है । विषय की दृष्टि से जहाँ इस ग्रन्थ में विविधता है, वहीं काव्यात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से गाथासप्तशती अनुपम कृति है। श्रृंगाररस का तो यह अक्षय सागर ही है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, व्यंगोक्ति, अन्योक्ति आदि अलंकारों का स्थान-स्थान पर सुन्दर प्रयोग हुआ है। अन्योक्ति अलंकार का यह उदाहरण दृष्टव्य है तुह मुहसारिच्छं ण लहइ त्ति संपुण्णमंडलो विहिणा । अण्णमअं व्व घडइउं पुणो वि खण्डिज्जड़ मिअङ्को ।। (गा. 3.7 ) अर्थात् - जब सम्पूर्ण चन्द्र भी तुम्हारे मुख की समानता नहीं प्राप्त कर सका, तो विधाता के द्वारा दूसरे नवीन चन्द्रमा का सृजन करने के लिए बार-बार चन्द्रमा को खंडित किया जा रहा है। वज्जालग्गं वज्जालग्ग विभिन्न कवियों द्वारा रचित प्राकृत सुभाषितों का संग्रह ग्रन्थ है। वज्जालग्ग के संकलन कर्त्ता महाकवि जयवल्लभ हैं। इस मुक्तककाव्य का वज्जालग्ग नाम एक विशिष्ट अर्थ का द्योतक है । 'वज्जा' एक देशी शब्द है, जिसका अर्थ है अधिकार या प्रस्ताव तथा 'लग्ग' का अर्थ समूह है। इस दृष्टि से इस मुक्तककाव्य में एक विषय से सम्बन्धित गाथाओं के समूह का संकलन एक 'वज्जा' के अन्तर्गत किया गया है। पूरे काव्य में 995 गाथाएँ संकलित हैं, जो 95 वज्जाओं में विभक्त हैं । कवि जयवल्लभ के अनुसार नाना कवियों द्वारा विरचित श्रेष्ठ गाथाओं का संकलन कर उन्होंने इस काव्य की रचना की है। विविध सुभाषितों का संकलन करने वाला यह काव्य-ग्रन्थ कई अर्थों में गाथासप्तशती की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है । गाथासप्तशती में श्रृंगार व सौन्दर्य चित्रण से सम्बन्धित गाथाओं का समावेश अधिक है। लेकिन वज्जालग्ग में कवि जयवल्लभ ने व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर सामाजिक हितों पर अधिक बल दिया है। उन्होंने मानवता के प्रकाश में विविध जीवन मूल्यों को इसमें प्रतिष्ठापित करने का प्रयत्न किया है। इसमें 86
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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