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________________ 6 प्राकृत के प्रमुख काव्य ग्रन्थ विभिन्न जैन आगम–ग्रन्थों में काव्य-तत्त्व प्रचुरता से विद्यमान रहे हैं। उत्तराध्ययन की विभिन्न गाथाओं में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का बहुलता से प्रयोग मिलता है । प्राकृत में लिखे गये कथा - ग्रन्थों एवं चरित - काव्यों में भी काव्य - तत्त्वों का प्रचुर प्रयोग हुआ है । पउमचरियं, तरंगवई, वसुदेवहिण्डी, कुवलयमाला आदि ग्रन्थों में काव्य-तत्त्वों के विविध पक्षों यथा-छंद, रस, अलंकार, रीति, वस्तु - वर्णन आदि की छटा दर्शनीय है। वस्तुतः प्राकृत भाषा के वर्ण ललित व सुकुमार ही नहीं, मधुर व कोमल भी हैं, अतः काव्य-तत्त्व स्वतः ही इस भाषा में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। धार्मिक-साहित्य, कथा- ग्रन्थ, चरित - साहित्य, नाटक आदि विधाओं के अतिरिक्त प्राकृत भाषा में स्वतन्त्र रूप से रसमयी काव्यों की रचनाएँ भी प्राप्त होती हैं, जिनमें श्रृंगार रस की प्रधानता है । प्राकृत रसमयी काव्यधारा रूढ़िवादिता व कट्टरता से परे मानवता के निकट प्रवाहित हुई है । इनमें छोटे-छोटे मुक्तकों द्वारा विविध जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने का प्रयास किया गया है । मित्रता, स्नेह, प्रेम, शृंगार, विरह, सौन्दर्य आदि मानव जीवन के विविध पक्षों का इनमें यथार्थ व काव्यात्मक चित्रण हुआ है। प्राकृत काव्य की प्रशंसा में वाक्पतिराज की यह उक्ति सत्य ही प्रतीत होती है कि - णवमत्थ- दंसणं संनिवेस सिसिराओ बन्ध - रिद्धीओ । अविरलमिणमो आभुवण-बन्धमिह णवर पययम्मि ॥ ( गउडवो - 92 ) अर्थात् - सृष्टि के प्रारंभ से लेकर आज तक प्रचुर परिमाण में नूतन अर्थों का दर्शन तथा सुन्दर रचनावली प्रबंध सम्पत्ति यदि कहीं भी है, तो केवल प्राकृत काव्य में ही है। हाल, प्रवरसेन, जयवल्लभ आदि प्राकृत के प्राचीन काव्यकार हैं। रसमयी प्राकृत काव्यों की श्रृंखला में अनेक रचनाएँ प्राप्त होती हैं । विद्वानों I 83
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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