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________________ द्वारा प्राकृत के रसमयी काव्यों को तीन भागों में विभाजित किया है। (1) मुक्तककाव्य (2) महाकाव्य (3) खण्डकाव्य । यहाँ इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। मुक्तककाव्य जिस काव्य का प्रत्येक पद्य दूसरे पद्य की अपेक्षा के बिना स्वतन्त्र रूप से अर्थ की रसानुभूति कराने में सक्षम होता है, वह काव्य मुक्तक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मुक्तककाव्य की रचना भारतीय साहित्य में वैदिक युग से ही देखी जा सकती है। प्राकृत भाषा में मुक्तककाव्य का प्राचीन रूप आगम साहित्य में प्राप्त होता है। आगम साहित्य में कई स्थानों पर उपदेश या नीति का प्रणयन करने हेतु सरस पद्यों का उपयोग हुआ है। प्राकृत के मुक्तक स्तुति, स्तवन या स्तोत्र की धार्मिक पृष्ठभूमि से प्रारंभ हुए हैं। अतः धर्म-तत्त्व की इनमें प्रधानता है, किन्तु आगे चलकर ऐहिकता के समावेश के कारण श्रृंगार रस की अनुभूति भी इनमें समाविष्ट हो गई। आचार्य हेमचन्द्र के मुक्तक शृंगार, वीर एवं करुण तीनों ही रसों से युक्त हैं। प्राकृत साहित्य में मुक्तक के रूप में कई गाथाएँ विभिन्न ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं, किन्तु व्यवस्थित रूप से संकलित हुए मुक्तककाव्य की दो रचनाएँ उपलब्ध हैं। (1) गाहासत्तसई (2) वज्जालग्गं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। गाहासत्तसई गाथासप्तशती मुक्तककाव्य की परम्परा का प्रतिनिधि काव्य है। इसकी गणना शृंगार रस प्रधान प्राकृत के सर्वश्रेष्ठ मुक्तककाव्यों में की जाती है। इस काव्य के संकलन कर्ता महाकवि वत्सल हाल हैं। इनका समय लगभग ई.सन् की प्रथम शताब्दी माना गया है। कवि हाल ने अनेक कवि एवं कवियत्रियों की लगभग 1 करोड़ गाथाओं में से सात सौ सर्वश्रेष्ठ गाथाओं का संकलन कर गाथासप्तशती की रचना की है। इस दृष्टि से यह सत्तसई परम्परा का प्रतिनिधि ग्रन्थ भी है। इसी ग्रन्थ के आधार पर आगे चलकर आर्यासप्तशंती, बिहारीसतसई आदि की रचना हुई। बाणभट्ट, मम्मट, वाग्भट्ट आदि सभी अलंकारशास्त्रियों ने इस मुक्तककाव्य की प्रशंसा
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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