________________
ई. सन् 861 का कक्कुक का घटयाल प्राकृत शिलालेख भी प्राप्त हुआ है, जो जोधपुर से 20 मील उत्तर की ओर घटयाल गाँव में उत्कीर्ण है।
इस प्रकार ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से प्राकृत में शिलालेख लिखे जाते रहे हैं। ये शिलालेख भाषा, साहित्य एवं इतिहास तीनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन अभिलेखों से भारत के प्राचीन इतिहास का ज्ञान तो होता ही है, साथ ही प्राचीन भाषाओं की प्रवृत्तियों को समझने के लिए भी ये शिलालेख अत्यन्त उपयोगी हैं। प्राचीन भारतीय आर्यभाषा की विकसित परम्परा मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के रूप में किस प्रकार प्रवेश कर रही थी, इसकी जानकारी के लिए शिलालेखी साहित्य का अध्ययन आवश्यक है।
सहायक ग्रन्थ 1. अशोक के अभिलेख – ले. राजबली पाण्डेय, ज्ञान मण्डल लिमिटेड,
वाराणसी 2. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास-ले. डॉ.
नेमिचन्द्रशास्त्री, तारा बुक एजेन्सी, वाराणसी 3. प्राकृत साहित्य का इतिहास - ले. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, चौखम्बा
विद्याभवन, वाराणसी
4. प्राचीन भारत का इतिहास एवं संस्कृति - ले. कृष्णचन्द्र श्रीवास्तव
000