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मौर्यकाल की वंश परम्परा तथा कालगणना की दृष्टि से इसका महत्त्व अशोक के शिलालेखों से अधिक है। इसमें वंश तथा वर्ष संख्या का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। तत्कालीन सामाजिक व राज व्यवस्था का सुन्दर चित्रण है। खारवेल के हाथगुम्फा अभिलेख से निम्न महत्त्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं।
1. इस अभिलेख से सम्राट खारवेल के व्यक्तिगत जीवन का पता चलता है। पन्द्रह वर्ष की आयु में उसे युवराज बनाया गया था तथा 24 वर्ष की आयु में उसका राज्याभिषेक किया गया था।
2. इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि खारवेल एक सफल विजेता था। उसने अपने समय की राजनीति को अत्यधिक प्रभावित किया। दक्षिण आन्ध्र वंशी राजा शातकर्णी खारवेल का समकालीन था। शातकर्णी की परवाह न करके खारवेल ने शासन के दूसरे वर्ष में दक्षिण में एक बड़ी भारी सेना भेजी। शासन के चौथे वर्ष में भोजकों, पूर्वी खानदेश और अहमदनगर के रठिकों के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। खारवेल ने मगध पर चढ़ाई की और वहाँ के राजा बहसति मित्र को पराजित किया तथा कलिंग जिन-प्रतिमा जिसे नन्द शासक शताब्दियों पहले ले गया था, उसे अपनी राजधानी वापस लाया । सुदूर दक्षिण के पाण्ड्य राजा के यहाँ से खारवेल के पास बहुमूल्य उपहार आते थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक समस्त भारत में उसने विजयपताका फहराई थी। 3. खारवेल एक वर्ष विजय के लिए प्रस्थान करता था तो दूसरे वर्ष महल आदि बनवाता, दान देता तथा प्रजाहित के कार्य करता था। शासन काल के पाँचवें वर्ष में वह तनसुलि से एक नहर के जल को अपनी राजधानी में लाया था। छठे वर्ष में एक लाख मुद्रा व्यय करके उसने अपनी प्रजा पर अनुग्रह किया और ब्राह्मणों को बड़े-बड़े दान दिये। उसने ग्रामीण तथा शहरी जनता के कर माफ किये। 4. खारवेल का यह अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत वर्ष का सर्वप्रथम उल्लेख इसी शिलालेख की दसवीं पंक्ति में भरधवस के रूप में मिलता है। इस देश का नाम भारतवर्ष है इसका