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________________ में ई.पू. तीसरी शताब्दी की प्राकृत का स्वरूप सुरक्षित है। साथ ही प्राचीन भारतीय भाषाओं के मानचित्र को समझने की दृष्टि से भी ये अभिलेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। शौरसेनी, अर्धमागधी एवं पालि भाषा के प्राचीन रूप एवं उनके विकास क्रम की जानकारी के लिए ये सर्वोत्तम लिखित प्रमाण हैं । इन अभिलेखों में तत्कालीन भाषा के प्रादेशिक भेद भी प्राप्त होते हैं । केन्द्रीय बोली मागधी के अतिरिक्त उत्तरी, पश्चिमी एवं पूर्वी भाषा के रूप भी इन लेखों में परिलक्षित होते हैं । साहित्यिक दृष्टि से भी ये अभिलेख महत्त्वपूर्ण हैं। अशोक द्वारा देवानां प्रिय प्रियदर्शी की उपाधि धारण की गई थी, जो बाद में ब्राह्मण साहित्य में अत्यंत लोकप्रिय हुई । यथा इयं धंमलिपी देवानं प्रियेन प्रियदसिना राया लेखापिता । (पहला अभिलेख ) सम्राट खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख चेदि वंश में जैन सम्राट खारवेल जो उस समय उड़ीसा (कलिंग) का चक्रवर्ती सम्राट था। उसका एक शिलालेख उड़ीसा के भुवनेश्वर तीर्थ के पास उदयगिरि पर्वत की गुफा में खुदा हुआ मिलता है । यह हाथीगुम्फा के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें कलिंग के राजा खारवेल के जीवन वृत्तांतों तथा उसके शासन काल के प्रथम 13 वर्ष की घटनाओं का वर्णन है । यह शिलालेख ई.पू. 150 के लगभग का है । ब्राह्मी लिपि में लिखे गये इस अभिलेख में 17 पंक्तियाँ हैं, जो करीब 84 वर्ग फुट क्षेत्रफल में लिखी गई हैं। इसकी भाषा प्राचीन शौरसेनी या जैन शौरसेनी से मिलती-जुलती है। महत्त्व हाथीगुम्फा अभिलेख जैन अर्हतों की स्तुति से प्रारंभ होता है। लेकिन इसका उद्देश्य लौकिक ही है। यह प्राचीनतम राज प्रशस्ति है, जिसमें खारवेल के शासन काल की घटनाओं को गिनाया गया है। इस दृष्टि से यह समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति से तुलनीय है। खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख भारतीय साहित्य एवं इतिहास दोनों ही दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इतिहासकारों का मत है कि 79
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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