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गया। दुर्गमता के कारण यहाँ पर लोगों का आवागमन बन्द सा हो गया। पहाड़ों और जंगल के बीच आशातना होती रही। ___संवत् 1959-60 में साध्वी प्रवर्तिनी श्री सुन्दरश्रीजी म.सा. ने इस तीर्थ के पुनरोद्धार का कार्य प्रारम्भ कराया और गुरु भ्राता आचार्य श्री हिमाचलसूरीश्वरजी भी उनके साथ जुड़ गये। इनके अथक प्रयासों से पुनर्स्थापित यह तीर्थ विकास के पथ पर निरन्तर आगे बढता हुआ आज विश्व भर में ख्याति प्राप्त कर चुका है।
तीर्थस्थली - मूलनायक श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथजी के मुख्य मन्दिर के अलावा यहाँ पर प्रथम तीर्थंकर परमात्मा श्री आदिनाथ प्रभु का मंदिर एवं तीसरा मन्दिर 16वें तीर्थंकर परमात्मा श्री शांतिनाथ प्रभु का है। इसके अतिरिक्त अनेक देवल-देवलिये, दादावाड़ियाँ एवं गुरु मन्दिर भी हैं, जो मूर्तिपूजक परम्परा के सभी गच्छों का एक संगठित रूप संजोये हुये हैं।
मूल मन्दिर में तीर्थ के अधिष्ठायक देव श्री भैरव देव की अत्यन्त चमत्कारिक प्रतिमा है जिसके प्रभाव से देश के कोने-कोने से लाखों यात्री प्रति वर्ष यहाँ दर्शनार्थ आकर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव करते हैं। श्री भैरवदेव के चमत्कारिक प्रभाव से अभिप्रेत होकर अनेक भैरवदेव के नाम से अनेक धार्मिक, सामाजिक और व्यावसायिक प्रतिष्ठान स्थापित किए हैं।
तीनों मन्दिर वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं। चौमुखजी काँच का मन्दिर, महावीर स्मृति भवन तथा शान्तिनाथजी के मन्दिर में तीर्थंकरों के पूर्व भवों के पट्ट भी अत्यन्त कलात्मक व दर्शनीय हैं। तीर्थ की विशाल भोजनशाला, नवकारसी भवन व हजारों यात्रियों के ठहरने हेतु अनेक धर्मशालाएं, समुचित जल-व्यवस्था, विद्युत व्यवस्था, तपस्वियों हेतु आयम्बिलशाला, भाताशाला एवं स्थान-स्थान पर अनेक प्रकार के वृक्षों व पुष्पयुक्त वाटिकाएं पर्यावरण को शुद्ध, सात्विक व मनोरम बनाती हैं।
जैनों के मूल सिद्धांत अंहिसा, जीवदया व मानव सेवा हेतु तीर्थ में विशाल गौशाला, पशु चिकित्सालय, कबूतरों व पक्षियों को दाना व्यवस्था उपलब्ध हैं। अकाल में गौशालाओं व जल संकट प्रभावी क्षेत्रों को भारी आर्थिक सहयोग तो है ही, साथ ही आपातकालीन चिकित्सा हेतु तीर्थ की ओर से एम्बुलेन्स सुविधा भी उपलब्ध हैं। तीर्थ स्थल पर आर्युवेदिक औषधालय, ऐलोपैथिक चिकित्सालय तथा बालोतरा में कम्प्यूटराईज्ड होम्योपैथिक चिकित्सालय भी तीर्थ द्वारा संचालित किया जा रहा है।