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________________ श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ- संक्षिप्त परिचय इतिहास - किंवदंतियों के आधार पर श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ की प्राचीनता का उल्लेख महाभारत काल यानि भगवान् श्री नेमीनाथ के समयकाल से जुड़ा है किन्तु आधारभूत ऐतिहासिक प्रमाण से इसकी प्राचीनता वि.सं. से 200-300 वर्ष पूर्व यानि 2200-2300 वर्ष पूर्व की मानी जा सकती है। अतः श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीन जैन तीर्थों में से है, जो 2000 वर्ष से भी अधिक समय से इस क्षेत्र की खेड़पट्टन व महेवानगर की ऐतिहासिक समृद्ध, सांस्कृतिक धरोहर का श्रेष्ठ प्रतीक है। महेवानगर ही पूर्व में वीरमपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था। वीरमसेन ने वीरमपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोड़ा नगर बसाया था। आज भी बालोतरा-सिणधरी हाईवे पर सिणधरी गांव के पास नाकोड़ा ग्राम लूणी नदी के तट पर आया हुआ है, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मूलनायक भगवान् श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा प्राप्त हुई, जो यहाँ प्रतिष्ठित की गई और तब से यह तीर्थ नाकोड़ाजी के नाम से विश्व विख्यात है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा की पुनर्प्रतिष्ठा तीर्थ संस्थापक आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी द्वारा वि.सं. 1502 में करवाई गई थी। यहाँ की अन्य प्रतिमाओं में से कुछ सम्राट अशोक के पौत्र सम्प्रति राजा के काल की हैं तथा कुछ पर वि.सं. 1090 व 1205 का उल्लेख है। ऐसा भी उल्लेख प्राप्त होता है कि संवत् 1500 के आस-पास वीरमपुर नगर में 50 हजार की आबादी थी और ओसवाल जैन समाज के यहाँ पर 2700 परिवार रहते थे। व्यापार एवं व्यवसाय की दृष्टि से प्राचीन वीरमपुर नगर, वर्तमान में नाकोड़ा तीर्थ, इस क्षेत्र का प्रमुख केन्द्र रहा था। तीर्थ ने अनेक बार उत्थान एवं पतन को आत्मसात किया है। विधर्मियों की विध्वंसनात्मक-वृत्ति ने वि.सं. 1500 के पूर्व इस क्षेत्र के कई स्थानों को नष्ट-भ्रष्ट किया, जिसका दुष्प्रभाव तीर्थ पर भी हुआ। लेकिन संवत् 1502 की प्रतिष्ठा के पश्चात् यहाँ प्रगति का युग पुनः प्रारम्भ हुआ। वर्तमान में तीनों मन्दिरों का परिवर्तित व परिवर्धित रूप इसी काल से संबन्धित हैं। इसके पश्चात् क्षत्रिय राजा कुंवर द्वारा यहाँ के महाजन प्रमुख परिवार के साथ किये गये अपमानजनक व्यवहार से पीड़ित होकर समस्त जैन समाज ने इस नगर का त्याग कर दिया था। एक बार फिर इसकी कीर्ति में कमी आने लगी और धीरे-धीरे यह तीर्थ वापस सुनसान हो
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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