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जयपुर - नाकोड़ा ट्रस्ट द्वारा जयपुर स्थित प्राकृत भारती परिसर में श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ का शिखरबद्ध मंदिर चार वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था। भव्य मंदिर में मूलनायक पार्श्वनाथ व नाकोड़ा भैरव की प्रतिमा हूबहू मेवानगर जैसी है साथ ही गणधर गौतम स्वामी, दादा गुरुदेव श्री जिनकुशलसूरिजी व शासन माता पद्मावती की चमत्कारिक मूर्तियाँ हैं। जो धर्मप्रेमी नाकोड़ा दर्शनार्थ नहीं जा सकते वे लोग यहीं दर्शन कर अपने आपको धन्य मान लेते हैं। मंदिर की सुचारु व्यवस्था नाकोड़ा ट्रस्ट के निर्देशन में मंदिर व्यवस्था समिति द्वारा चलायी जाती है। नाकोड़ा ट्रस्ट की ओर से मंदिर के साथ ही पूर्व निर्मित अतिथि भवन भी है जो ट्रस्टियों तथा शोधार्थियों के काम आता है।
जोधपुर - जोधपुर में भगवान् महावीर विकलांग सहायता समिति के कृत्रिम अंग लगाने की योजना का पूरा व्यय यह तीर्थ वहन कर रहा है। जोधपुर का अन्ध-विद्यालय, मन्द बुद्धि विद्यालय, बाड़मेर का होम्योपैथिक चिकित्सालय, भैरूबाग, जोधपुर इत्यादि अनेक संस्थाएं तीर्थ से नियमित आर्थिक सहयोग प्राप्त करती है। तीर्थ ने अहमदाबाद के राजस्थान हॉस्पीटल में आपातकालीन कक्ष का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त गम्भीर रोगों की महंगी चिकित्साओं हेतु तीर्थ से आर्थिक सहयोग के रूप में धनराशियाँ भी दी जाती हैं।
ज्ञान प्रसार - ज्ञान जैनों का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है। तीर्थ पर नवनिर्मित भवन में एक विशाल ज्ञानशाला संचालित की जा रही है। जिसमें वर्तमान में लगभग 165 छात्र धार्मिक एवं संस्कारयुक्त 6 वर्षीय पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहे है। इस ज्ञानशाला में साधु-साध्वियों के अध्ययन हेतु भी समुचित व्यवस्था हैं। तीर्थ कर्मचारियों के बच्चों को सुसंस्कारित करने हेतु तीर्थ पर ही एक संस्कारशाला भी चल रही है। तीर्थ के योगदान से स्थानीय राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय का भवन निर्माण किया गया था। जोधपुर में श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन महाविद्यालय तीर्थ के नाम से संचालित हो रहा है। तीर्थ द्वारा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के माध्यम से पुराने ग्रन्थों का अनुवाद प्रकाशन कार्य एवं दिल्ली के भोगीलाल लहरचन्द शोध संस्थान के माध्यम से जैन आगमों का अनुवाद-प्रकाशन इत्यादि भी करवाया जा रहा है। तीर्थ पर शोध सहयोगी विशाल पुस्तकालय व वाचनालय है तथा योग्यता व आवश्यकता के मापदण्ड पर उच्च व तकनीकी शिक्षा हेतु प्रतिवर्ष छात्रवृत्तियाँ भी दी जाती है। संस्कारयुक्त बाल साहित्यों का नगण्य मूल्य पर विक्रय किया जाता है। जैन ज्ञान वृद्धि हेतु तीन वर्ष