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पहले सम्राट अशोक मांस भक्षी था, किन्तु बाद में उसने जीव हिंसा का निषेध किया था। राजनैतिक एवं प्रशासनिक महत्त्व
अशोक के अभिलेखों से उसके साम्राज्य के विस्तार का ज्ञान होता है। अशोक का साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान से पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तराई से दक्षिण में मद्रास प्रान्त के येरुगुडी (करनूल जिला) तक व्याप्त था, क्योंकि प्राप्त शिलालेखों का सीमा क्षेत्र उपर्युक्त ही है। अशोक के द्वितीय तथा तेरहवें शिलालेख में राजाओं की जो सूची प्राप्त है, उससे भी इसकी पुष्टि होती है।
अशोक के शिलालेखों से मौर्यकालीन प्रशासन व्यवस्था का ज्ञान . होता है। प्रशासन व न्याय व्यवस्था के क्षेत्र में अशोक ने अनेक नये-नये प्रयोग किये। इन प्रयोगों व उनसे सम्बन्धित पदाधिकारियों यथा - महामात्रों, ब्रजभमिकों, अन्तमहामात्रों आदि का विस्तत उल्लेख इन अभिलेखों में मिलता है। पाँचवें शिलालेख में धर्ममहामात्य नामक नये कर्मचारी की नियुक्ति का वर्णन है। तीसरे शिलालेख में रज्जुक, प्रादेशिक तथा युक्त नामक पदाधिकारियों को प्रजाहित के लिए राज्य में परिभ्रमण करने की आज्ञा दी गई है। चौथे स्तंभ अभिलेख में अशोक ने स्वयं रज्जुक के विभिन्न कार्यों का विवेचन किया है। अशोक के अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि पाटलिपुत्र, कौशाम्बी, तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसली, सुवर्णगिरि नामक प्रान्तों में शासन विभक्त था। एक अभिलेख में आटविक जातियों को सम्बोधित करते हुए अशोक ने अपनी शक्ति का जिस प्रकार उल्लेख किया है, उससे लगता है कि वह अपने राज्य में विद्रोहात्मक प्रवृत्तियों को सहन नहीं करता था। अशोक की प्रशासनिक व्यवस्था इस प्रकार की थी कि किसी भी व्यक्ति को उससे कहीं भी मिलने की अनुमति थी।
सामाजिक महत्त्व
__अशोक ने अपने अभिलेखों द्वारा जातिवाद, हिंसा, श्रमण-ब्राह्मण के प्रति अनुचित व्यवहार का निषेध किया तथा समाज में सदाचार, सुव्यवस्था व निश्छल प्रेम उत्पन्न करने का प्रयास किया। समाज के