________________
दृष्टि से ग्रह, नक्षत्र, तारा, सूर्य, चन्द्र आदि की आयु, विमान, गति, परिवार आदि से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सामग्री भी इसमें विवेचित है। लब्धिसार में आत्मा की शुद्धि के लिए आवश्यक पाँच लब्धियों – क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण को प्राप्त करने की विधि का विस्तार से वर्णन हुआ है। क्षपणसार में कर्मों से विमुख होने की विधि का वर्णन है। द्रव्यसंग्रह जैन सिद्धान्त शास्त्र का 58 गाथाओं का संक्षिप्त ग्रन्थ है। इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश व काल इन छ: द्रव्यों का निरूपण किया गया है। सात तत्त्वों, ध्यान व मोक्ष-मार्ग का भी इसमें विवेचन हुआ है। यथा ध्यान का स्वरूप बताते हुए कहा गया है
मा चिट्ठह मा जंपह मा चिन्तह किंवि जेण होइ थिरो । अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे ज्झाणं ।।(गा. 53)
अर्थात् – कुछ मत करो, कुछ मत बोलो, कुछ मत सोचो। जिससे आत्मा, आत्मा में स्थिर हो, यही परम ध्यान है।
इन उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त शौरसेनी प्राकृत में दिगम्बर परम्परा में अन्य सैद्धान्तिक ग्रन्थ भी लिखे गये हैं।
सहायक ग्रन्थ 1. जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा - ले. देवेन्द्रमुनि शास्त्री,
तारकगुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर 2. जैनागम दिग्दर्शन - ले. नगराज मुनि, प्राकृत भारती अकादमी,
जयपुर 3. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग 4) - ले. डॉ. मोहनलाल मेहता
एवं प्रो. हीरालाल र. कापड़िया, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान,
वाराणसी 4. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा (खण्ड 2) -
ले. डॉ. नेमिचन्द्रशास्त्री, ज्योतिषाचार्य, अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्, सागर (मध्यप्रदेश)