________________
कत्तिगेयाणुवेक्खा
कार्तिकेयानुप्रेक्षा के रचयिता, स्वामी कार्तिकेय हैं। इनके समय को लेकर विद्वान एक मत नहीं हैं। डॉ. ए.एन. उपाध्ये ने इनका समय छठी शताब्दी माना है। इस ग्रन्थ में 489 गाथाएँ हैं, जिनमें चंचल मन एवं विषय-वासनाओं के विरोध के लिए क्रमशः अध्रुव, अशरण, संसार, एकत्व अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म इन बारह अनुप्रेक्षाओं का विस्तार से निरूपण हुआ है। प्रसंगवश इसमें जीव, अजीव आदि सात तत्त्व, द्वादशव्रत, दान, संलेखना, दशधर्म, सम्यक्त्व के आठ अंग, बारह प्रकार के तप, ध्यान के भेद-प्रभेद आदि का भी विवेचन हुआ है। इस ग्रन्थ की गाथाओं की अभिव्यंजना बड़ी सशक्त है। एक-एक गाथा गूढ़ से गूढ़ तथ्यों को समाहित किये हुए है। आचार्य कुन्दकुन्दकृत बारसअणुवेक्खा और इस ग्रन्थ में विषय और भाषा-शैली की दृष्टि से बहुत समानता देखी जा सकती है। आचार्य नेमिचन्द्र की रचनाएँ
___ आचार्य नेमिचन्द्र जैन सिद्धान्त साहित्य के बहुश्रुत एवं अद्वितीय विद्वान थे। इन्हें सिद्धान्तचक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त थी। ये कर्नाटक के गंगवंशीय राजा राचमल्ल के सेनापति चामुण्डराय के समकालीन थे। इनका समय लगभग 11वीं शताब्दी माना गया है। इन्होंने अनेक प्राकृत ग्रन्थों का प्रणयन कर जैन सिद्धान्त साहित्य की विस्तार से व्याख्या प्रस्तुत की है। इनकी निम्न रचनाएँ प्रसिद्ध हैं
1. गोम्मटसार 2. त्रिलोकसार 3. क्षपणसार 4. लब्धिसार 5. द्रव्यसंग्रह
गोम्मटसार दो भागों में है - जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड । इस ग्रन्थ के माध्यम से आचार्य ने षट्खण्डागम के विषय को सरलता से समझाने का प्रयत्न किया है। त्रिलोकसार करणानुयोग का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसमें तीनों लोकों की रचना से सम्बन्धित सभी तथ्यों का निरूपण हुआ है। जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, मानुष क्षेत्र, भवनवासियों के लिए रहने के स्थान, आयु, परिवार आदि का विस्तार से विवेचन हुआ है। खगोल विज्ञान की