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________________ लोकविभाग आदि प्राचीन ग्रन्थों के उल्लेख मिलते हैं । इस ग्रन्थ में त्रिलो की रचना के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। तीनों लोक की स्वरूप, आकार, प्रकार, विस्तार, क्षेत्रफल और युग-परिवर्तन आदि विषयो का विस्तार से विवेचन हुआ है। यह ग्रन्थ 9 अधिकारों में विभक्त है।। 1. सामान्यलोक 2. नरकलोक 3. भवनवासीलोक 4. मनुष्यलोक . 5. तिर्यक्लोक 6. व्यन्तरलोक 7. ज्योतिर्लोक 8. देवलोक 9. सिद्धलोक । इन अधिकारों में मुख्यरूप से जैन भूगोल व खगोल का विस्तार से प्रतिपादन हुआ है। दृष्टिवाद के आधार पर त्रिलोक की मोटाई, चौड़ाई व ऊँचाई का निरूपण किया गया है। नरकलोक, भवनवासी देवों के स्वरूप, जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, लवणसमुद्र, तीर्थंकरों के जन्मस्थल, व्यन्तरदेवों, ज्योतिषीदेवों व वैमानिकदेवों की स्थिति, स्थान, परिवार, सुखभोग एवं सिद्धों के क्षेत्र, संख्या, अवगाहना आदि का विस्तार से विवेचन प्रस्तुत हुआ है। इस ग्रन्थ का विषय सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, धवला, जयधवला आदि ग्रन्थों से काफी मिलता-जुलता है। प्रसंगानुसार जैन सिद्धान्त, पुराण एवं इतिहास के विभिन्न तथ्यों पर भी चर्चा की गई है। प्राचीन गणित के अध्ययन के लिए भी यह ग्रन्थ उपयोगी है। भगवदी आराधणा भगवती आराधना शौरसेनी साहित्य का एक प्राचीन ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का मूल नाम आराधना है। किन्तु इसके प्रति श्रद्धा व पूज्य भाव व्यक्त करने की दृष्टि से भगवती विशेषण लगाया गया है। ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकार ने आराहणा भगवदी लिखकर आराधना के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। वर्तमान में यह भगवती आराधना के नाम से ही प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य शिवार्य हैं। विद्वानों द्वारा इनका समय लगभग ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी माना जाता है। इस ग्रन्थ में 2166 गाथाएँ हैं, जो 40 अधिकारों में विभक्त हैं। इन गाथाओं में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप इन चार आराधनाओं का निरूपण हुआ है। वस्तुतः इन आराधनाओं के माध्यम से मुनिधर्म को ही समझाया गया है। ग्रन्थ के प्रारंभ 68
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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