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________________ अट्ठपाहुडं अष्टपाहुड (अष्टप्राभृत) आचार्य कुन्दकुन्द के आठ संक्षिप्त ग्रन्थ हैं, परन्तु संकलन में एक साथ प्रकाशित होने के कारण अष्टपाहुड के नाम से प्रसिद्ध हैं। दर्शनपाहुड में 36 गाथाओं में सम्यग् दर्शन की महत्ता का निरूपण करते हुए कहा गया है कि सम्यग् दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी नहीं हो सकता। चारित्रपाहुड में 44 गाथाओं में सम्यग् दर्शनादि रत्नत्रय का निरूपण करते हए चारित्र के सम्यक्त्व का वर्णन किया है। सूत्रपाहुड की 27 गाथाओं में आगम ज्ञान के महत्त्व को बताते हुए उसके अनुसार आचरण की प्रेरणा दी गई है। बोधपाहुड में 62 गाथाओं में चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, जिनबिम्ब, आत्मज्ञान, प्रव्रज्या आदि का बोध दिया गया है। भावपाहुड की 163 गाथाओं में चित्त-विशुद्धि पर बल देते हुए कहा गया कि इसके बिना तप भी सिद्धि में सहायक नही हो सकता है। मोक्षपाहुड की 106 गाथाओं में आत्म-तत्त्व का विस्तार से विवेचन करते हुए बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा इन तीनों के स्वरूप को समझाया है। लिंगपाहुड में 22 गाथाओं में श्रमण के लिंग (चिन्ह) को लक्ष्य कर मुनिधर्म का निरूपण किया है तथा शीलपाहुड की 40 गाथाओं में शील की महत्ता को स्पष्ट कर उसे मोक्ष प्राप्ति में सहायक कहा है। इन प्रमुख ग्रन्थों के अतिरिक्त आचार्य कुन्दकुन्द के कुछ अन्य ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं। रयणसार में रत्नत्रय का विवेचन है। बारसाणुवेक्खा में बारह अनुप्रेक्षाओं का निरूपण किया है तथा भत्तिसंगहो में तीर्थंकरों व पंचपरमेष्ठी की स्तुति की गई है। तिलोयपण्णत्ती त्रिलोकप्रज्ञप्ति शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित करणानुयोग का प्राचीनतम ग्रन्थ है। धवला टीका में इस ग्रन्थ के अनेक उदाहरण उद्धृत हुए हैं। यह ग्रन्थ 8,000 श्लोक प्रमाण है। ग्रन्थ के अन्त में बताया गया हैअट्ठसहस्सप्रमाणं तिलोयपण्णतिणामाए अर्थात् आठ हजार श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ की रचना की गई है। इसके कर्त्ता कषायप्राभृत पर चूर्णिसूत्र के रचयिता आचार्य यतिवृषभ हैं। इस ग्रन्थ में दृष्टिवाद, मूलाचार, परिकर्म,
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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