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________________ एवं अनागत पर्यायें उस केवलज्ञानी के ज्ञान में प्रतिभासित हो जाती हैं। वह उन सभी पर्यायों को जानते व देखते हुए भी उनमें लिप्त नहीं होता है। इसके अतिरिक्त इस अधिकार में इन्द्रिय-अतीन्द्रिय सुख, शुभ-अशुभ व शुद्धोपयोग तथा मोहक्षय का भी निरूपण हुआ है। दूसरे भाग ज्ञेयाधिकार में षड्द्रव्यों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। द्रव्य को सत् अर्थात् उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य युक्त कहा है। इसके अतिरिक्त इस अधिकार में जीव का लक्षण, जीव व पुद्गल का सम्बंध, निश्चय-व्यवहारनय का अविरोध व शुद्धात्म स्वरूप आदि विषयों का विवेचन किया है। तीसरे चारित्राधिकार में मुनि की बाह्य व आभ्यान्तरिक क्रियाओं की शुद्धता का प्रतिपादन हुआ है। इस सन्दर्भ में दीक्षा-विधि, छेद का स्वरूप, युक्त आहार, उत्सर्ग एवं अपवाद मार्ग आदि का विवेचन हुआ है। वस्तुतः प्रवचनसार एक शास्त्रीय ग्रन्थ के साथ-साथ नव दीक्षित श्रमण हेतु एक व्यवहारिक नियम पुस्तिका भी है, जो आचार्य कुन्दकुन्द की आध्यात्मिक अनुभूति से ही प्रकट हुई है। समयसारो वोच्छामि समयपाहुडमिणमो - समयसार के प्रारम्भ में आई इस गाथा से स्पष्ट होता है कि कुन्दकुन्द को इस ग्रन्थ का नाम समयपाहुड अभीष्ट था। किन्तु प्रवचनसार, नियमसार आदि ग्रन्थों की परम्परा में इसका नाम समयसार प्रचलित हो गया। समय के दो अर्थ हैं, आत्मा या समस्त पदार्थ । इस दृष्टि से जिसमें आत्मा या सभी पदार्थों का सार वर्णित है, वही समयसार है। समयसार एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है। शुद्ध आत्म-तत्त्व का विवेचन जिस व्यापकता से इसमें हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। समय की व्याख्या करते हुए ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही कहा है कि जब जीव सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र में स्थित हो, तो उसे स्वसमय जानो तथा जब पुद्गल कर्म-प्रदेशों में स्थित हो, तो उसे परसमय जानो। शुद्धात्म तत्त्व का निरूपण करने वाला यह ग्रन्थ 10 अधिकारों में विभक्त है। इन अधिकारों में क्रमशः शुद्ध-अशुद्धनय, जीव-अजीव, कर्म-कर्ता, पाप-पुण्य, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष एवं सर्व विशुद्ध ज्ञान का विवेचन हुआ है।
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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