SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टीका के आधार पर षट्खण्डागम के प्रारम्भिक पाँच खंडों पर इस टीका ग्रन्थ की रचना की है। इसका रचना काल शक संवत् 738 अर्थात् ई. सन् 816 माना गया है। यह टीका 72,000 श्लोक, प्रमाण है। यह टीका ग्रन्थ प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाषा में है। छठा खण्ड महाबन्ध स्वयं आचार्य भूतबलि द्वारा विस्तार से लिखा गया है। यह महाधवल के नाम से भी प्रसिद्ध है। कसायपाहुडं आचार्य धरसेन के समकालीन आचार्य गुणधर हुए हैं। आचार्य गुणधर को द्वादशांगी का कुछ श्रुत स्मरण था। वे पाँचवें ज्ञानप्रवादपूर्व की दशम वस्तु के तीसरे कसायपाहुड के पारगामी थे। इसी आधार पर उन्होंने कषायप्राभृत नामक सिद्धान्त ग्रन्थ की रचना की। आचार्य गुणधर ने इसकी रचना कर नागहस्ति और आर्यमंक्षु को इसका व्याख्यान किया था। इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से क्रोधादि कषायों की राग-द्वेष परिणति, उनके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंध सम्बंधी विशेषताओं का विवेचन किया गया है। अतः इसका दूसरा नाम पेज्जदोसपाहुड भी प्रचलित है। यह ग्रन्थ 233 गाथा सूत्रों में विरचित है। ये सूत्र अत्यंत संक्षिप्त होते हुए भी गुढ़ार्थ आध्यात्मिक रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं। इस ग्रन्थ में 15 अधिकार 1. पेज्जदोसविभक्ति 2. स्थितिविभक्ति 3. अनुभागविभक्ति 4. प्रदेशविभक्ति-झीणाझीणस्थित्यन्तिक 5. बन्धक अधिकार 6. वेदक अधिकार 7. उपयोग अधिकार, 8. चतुःस्थान अधिकार, 9. व्यंजन अधिकार 10. दर्शनमोहोपशमना 11. दर्शनमोहक्षपणा 12. संयमासंयमलब्धि 13. संयमलब्धि अधिकार 14. चारित्रमोहोपशमना 15. चारित्रमोहक्षपणा । इनमें प्रारम्भ के आठ अधिकारों में संसार के कारणभूत मोहनीय कर्म की और अन्तिम सात अधिकारों में आत्म-परिणामों के विकास से शिथिल होते हुए मोहनीय कर्म की विविध दशाओं का वर्णन है। मोहनीय कर्म किंस स्थिति में किस कारण से आत्मा के साथ सम्बन्धित होते हैं और
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy