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________________ ने उन दोनों महामेधावी शिष्यों को महाकर्मप्रकृतिप्राभृत रूप आगम ज्ञान देना प्रारंभ किया। दोनों शिष्यों ने भक्ति व निष्ठा पूर्वक इस आगम ज्ञान को धारण कर उसके आधार पर सूत्र रचना का कार्य प्रारम्भ कर दिया और आचार्य धरसेन के संरक्षण में षट्खण्डागम की रचना की। पुष्पदंत व भूतबलि द्वारा आगम लिपिबद्ध करने का यह नूतन प्रयास समकालीन तथा परवर्ती सभी आचार्यों द्वारा प्रशंसित किया गया है। इस आगम ग्रन्थ का रचना काल विद्वानों द्वारा लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी माना गया है। षट्खण्डागम के छ: खण्ड हैं। प्रथम खण्ड जीवट्ठाणं में आठ अनुयोगद्वार तथा नौ चूलिकाएँ हैं, जिसमें गुणस्थान एवं मार्गणाओं का आश्रय लेकर जीव की नाना अवस्थाओं का निरूपण हुआ है। यह भी चिंतन किया गया है कि कौन जीव किस प्रकार से सम्यग्दर्शन व सम्यकचारित्र को प्राप्त कर सकता है। द्वितीय खण्ड खुद्दाबंध के 11 अधिकारों में केवल मार्गणास्थानों के अनुसार कर्मबंध करने वाले जीव का वर्णन है। तृतीय खण्ड बंधसामित्तविचय में गुणस्थान व मार्गणास्थान के आधार पर कर्मबंध करने वाले जीव का निरूपण किया गया है। किन कर्मप्रकृतियों के बंध में कौन जीव स्वामी है और कौन जीव स्वामी नहीं है, इस पर भी चिंतन किया गया है। चतुर्थ वेयणाखंड में कृति और वेदना ये दो अनुयोगद्वार हैं। वेदना के कथन की इसमें प्रधानता है। पाँचवें वग्गणाखण्ड के प्रारम्भ में स्पर्श, कर्म एवं प्रकृति नामक तीन अनुयोगद्वारों का प्रतिपादन है। वर्गणाखंड का प्रधान अधिकार बंधनीय है, जिसमें बंध, बन्धक और बन्धनीय इन तीन की मुख्य रूप से प्ररूपणा की गई है। छठे खण्ड महाबन्ध में प्रकृति, प्रदेश, स्थिति एवं अनुभाग बंध का विस्तार से विवेचन है। अपनी विशालता के कारण यह खण्ड पृथक ग्रन्थ भी माना जाता है। षट्खण्डागम के टीका ग्रन्थ षट्खण्डागम पर समय-समय पर परिकर्म, व्याख्याप्रज्ञप्ति आदि अनेक टीकाएँ लिखी गई हैं। इनमें से आचार्य वीरसेन द्वारा लिखी गई धवला टीका प्रमुख है। आचार्य वीरसेन ने बप्पगुरुदेव की व्याख्याप्रज्ञप्ति (61>
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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