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________________ हुआ। चूर्णियाँ केवल प्राकृत में ही नहीं लिखी गई हैं, अपितु प्राकृत के साथ-साथ इनमें संस्कृत का भी प्रयोग है। अतः चूर्णियों की भाषा मिश्र प्राकृत कहलाती है। सामान्य रूप से चूर्णियों के कर्ता जिनदासगणि महत्तर माने जाते हैं। इनका समय लगभग छठी-सातवीं शताब्दी माना गया है। निम्न आगमों पर चूर्णियाँ लिखी गई हैं1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. व्याख्याप्रज्ञप्ति 4. जीवाजीवाभिगम 5. निशीथ 6. महानिशीथ 7. व्यवहार 8. दशाश्रुतस्कन्ध 9. बृहत्कल्प 10. पंचकल्प 11. ओघनियुक्ति 12. जीतकल्प 13. उत्तराध्ययन 14. आवश्यक 15. दशवैकालिक 16. नंदी 17. अनुयोगद्वार 18. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति । आगमिक-व्याख्या-साहित्य में चूर्णि साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। चूर्णि साहित्य में जैनधर्म व दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों का विवेचन हुआ है। नंदीचर्णि में केवलज्ञान व केवलदर्शन के क्रम पर विशेष चर्चा की गई है। आचार्य ने केवलज्ञान व केवलदर्शन के क्रमभावित्व का समर्थन किया है। आवश्यकनियुक्ति में निर्दिष्ट किये गये विषयों का विस्तार से विवेचन आवश्यकचूर्णि में किया गया है। विवेचन की सरलता, सरसता एवं स्पष्टता की दृष्टि से अनेक प्राचीन ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यान भी उद्धृत किये हैं। सूत्रकृतांगचूर्णि में विविध दार्शनिक मतों का चिन्तन किया गया है। चूर्णियों में वर्ण्य विषय को स्पष्ट करने हेतु प्रसंगानुसार प्राकृत की अनेक कथाएँ आई हैं, जो तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक व लौकिक तीनों ही पक्षों को उद्घाटित करती हैं। निशीथ-विशेष-चूर्णि तथा आवश्यकचूर्णि में वर्णित कथाएँ तो ऐतिहासिक, सामाजिक एवं पुरातात्त्विक सामग्रियों का भंडार ही हैं। प्राचीन लोकजीवन की इनमें सशक्त प्रस्तुति हुई है। ऋषभदेव, महावीर, श्रेणिकराजा, अभयकुमार, राजा चेटक, आर्यरक्षित, वररुचि आदि ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन-चरित भी इनमें वर्णित हैं। वस्तुतः चूर्णि साहित्य में निगूढ़ भावों को लोक कथाओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। प्राकृत भाषा के भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से भी ये चूर्णियाँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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