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________________ 5. पंचकल्प 6. व्यवहार 7. निशीथ 8. जीतकल्प 9. ओघनियुक्ति 10. पिण्डनियुक्ति । सभी भाष्यों के रचयिता आचार्यों के नाम अभी ज्ञात नहीं हैं। बृहत्कल्प-लघुभाष्य एवं पंचकल्प-महाभाष्य के रचयिता संघदासगणि तथा विशेषावश्यकभाष्य व जीतकल्पभाष्य के रचयिता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण माने जाते हैं। प्राचीन श्रमण-जीवन व संघ के इतिहास व परम्पराओं को जानने की दृष्टि से भाष्य साहित्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस साहित्य में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियों, लौकिक कथाओं और मुनियों के परम्परागत आचार-विचार की विधियों का प्रतिपादन हुआ है। विशेषावश्यकभाष्य में जैन आगमों में वर्णित ज्ञान, प्रमाण, नयनिक्षेप, स्याद्वाद, कर्मसिद्धान्त, आचार आदि अनेक विषयों का विवेचन अत्यन्त सहज रूप से हुआ है। जैन दार्शनिक सिद्धान्तों की तुलना अन्य दार्शनिक विचारधाराओं के साथ करते हुए जैन आगम साहित्य की मान्यताओं का तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। जीतकल्पभाष्य में जीतव्यवहार के आधार पर जो प्रायश्चित्त दिये जाते हैं, उनका वर्णन है । बृहत्कल्प-लघुभाष्य में श्रमणों के आचार-विचार का तार्किक दृष्टि से सूक्ष्म विवेचन किया गया है। यह भाष्य ग्रन्थ तत्कालीन, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों की झाँकी भी प्रस्तुत करता है। निशीथभाष्य में अनेक सरस एवं मनोरंजक कथाओं के माध्यम से विविध श्रमणाचार का निरूपण हुआ है। व्यवहारभाष्य में श्रमण के आचार-व्यवहार, तप, आलोचना, प्रायश्चित्त, बाल-दीक्षा की विधि आदि के अतिरिक्त प्रसंगवश विभिन्न देशों के रीति-रिवाजों आदि का भी वर्णन है। स्पष्ट है कि भाष्य साहित्य में धर्म-दर्शन एवं मनोविज्ञान का विश्लेषण हुआ है, भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के विकास की दृष्टि से भी यह हमारी अनमोल निधि है। चूर्णि साहित्य नियुक्ति व भाष्य साहित्य सांकेतिक व पद्यबद्ध रूप में था। अतः आगमों के गूढ़ सूत्रों को अधिक स्पष्टता व विशदता से बोधगम्य करने हेतु गद्य में व्याख्या करने का क्रम चला जो चूर्णि-साहित्य के रूप में प्रचलित
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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