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विषयों पर चर्चा हुई है। इनमें आवश्यकनियुक्ति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। श्रमण-जीवन की सफल साधना के लिए अनिवार्य सभी प्रकार के विधि-विधानों का संक्षिप्त एवं सुव्यवस्थित निरूपण आवश्यकनियुक्ति की एक बहुत बड़ी विशेषता है। इसमें पाँचों ज्ञान, षड्आवश्यक आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का विस्तार से विवेचन हुआ है। षड्आवश्यक के प्रथम आवश्यक सामायिक के अन्तर्गत नमस्कार मंत्र पर उत्पत्ति, निक्षेप, पद आदि 11 दृष्टियों से विचार किया गया है। आचारांग आदि अन्य नियुक्तियाँ भी महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें लौकिक कथाओं एवं सूक्तियों के माध्यम से सूत्रों के अर्थ को समझाने का प्रयत्न किया गया है। जैन तत्त्वज्ञान, पौराणिक परम्पराएँ, अर्ध ऐतिहासिक घटनाएँ आदि इनमें वर्णित हैं। जैन संस्कृति, जीवन-व्यवहार तथा चिन्तन क्रम के अध्ययन की दृष्टि से ये नियुक्तियाँ उपयोगी हैं। भाष्य साहित्य
नियुक्ति साहित्य सांकेतिक भाषा में लिखा गया था। अतः आगमों के गूढ़ सूत्रों के तात्पर्यों को समझने के लिए तथा नियुक्तियों में छिपे अर्थ-बाहुल्य को स्पष्ट करने के लिए जो आगम व्याख्याएँ लिखी गईं, वे भाष्य साहित्य के रूप में विख्यात हुई हैं। भाष्य भी प्राकृत गाथाओं में लिखे गये हैं तथा नियुक्तियों की तरह भाष्य भी संक्षिप्त ही हैं। नियुक्तियों व भाष्यों की शैली इतनी मिलती-जुलती है कि कई बार दोनों की गाथाओं का मिश्रण हो जाता है।
___भाष्य-साहित्य में अर्धमागधी प्राकृत के साथ-साथ मागधी व शौरसेनी का प्रयोग भी मिलता है। भाष्यों का लेखन काल लगभग ई. सन् की चौथी-पाँचवीं शताब्दी माना गया है। भाष्यकारों में संघदासगणि क्षमाश्रमण तथा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण प्रमुख हैं। सभी आगम ग्रन्थों पर भाष्यों की रचना नहीं हुई, अपितु कुछ भाष्य नियुक्तियों पर लिखे गये हैं
और कुछ भाष्य मूलसूत्रों पर लिखे गये हैं। मुख्य रूप से जिन ग्रन्थों पर भाष्यों की रचना हुई हैं, वे निम्न हैं - 1. आवश्यक 2. दशवैकालिक 3. उत्तराध्ययन 4. बृहत्कल्प