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________________ पद्यबद्ध टीकाएँ नियुक्तियों के नाम से जानी जाती हैं। नियुक्ति का अर्थ है - सूत्र में विद्यमान अर्थ की व्याख्या करना। नियुक्तियों की व्याख्या शैली निक्षेप पद्धति है। एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, किन्तु कौनसा अर्थ किस प्रसंग के लिए उपयुक्त है, यही स्पष्ट करना नियुक्ति का उद्देश्य है। दूसरे शब्दों में सही दृष्टि से शब्द के साथ अर्थ का सम्बन्ध स्थापित करना ही नियुक्ति है। प्राकृत गाथाओं में लिखी गई ये नियुक्तियाँ विषय का संक्षिप्त रूप से प्रतिपादन करती हैं। विषय का प्रतिपादन करने के लिए तथा विवेच्य विषय को समझाने के लिए इन नियुक्तियों में अनेक दृष्टान्तों व कथानकों का भी उपयोग किया गया है, परन्तु उनका वहाँ उल्लेख मात्र है, विशेष वर्णन नहीं है। इस दृष्टि से यह साहित्य इतना सांकेतिक है कि उन्हें भाष्य व टीका के बिना सम्यक् प्रकार से नहीं जाना जा सकता है। संभवतः कंठस्थ करने की दृष्टि से नियुक्तियाँ इस प्रकार की संकेत शैली में लिखी गई थीं। व्याख्या साहित्य में नियुक्तियाँ सर्वाधिक प्राचीन हैं। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु माने गये हैं। ये भद्रबाहु अन्तिम श्रुतकेवली, छेदसूत्र के रचयिता भद्रबाहु से पृथक हैं। इन्होंने आगम संकलन काल (ई. सन् की चौथी पाँचवीं शताब्दी के लगभग) से ही नियुक्तियाँ लिखना प्रारम्भ कर दिया था। भद्रबाहु ने निम्न दस सूत्रों पर नियुक्तियों की रचना की। 1. आवश्यक 2. दशवैकालिक 3. उत्तराध्ययन 4. आचारांग 5. सूत्रकृतांग 6. दशाश्रुतस्कन्ध 7. बृहत्कल्प 8. . व्यवहार 9. सूर्यप्रज्ञप्ति 10. ऋषिभाषित इनमें से ऋषिभाषित एवं सूर्यप्रज्ञप्ति की नियुक्तियाँ अप्राप्य हैं। इसके अतिरिक्त पिण्डनियुक्ति एवं ओघनियुक्ति आदि का भी उल्लेख मिलता है, जो मुनियों के आचार वर्णन की दृष्टि से इतनी महत्त्वपूर्ण मानी गई हैं कि कहीं कहीं उनकी गणना 45 मूल आगमों में भी की गई है। कुछ परम्पराएँ ओघनियुक्ति को आवश्यकनियुक्ति का तथा पिंडनियुक्ति को दशवैकालिकनियुक्ति का ही अंश मानकर स्वतंत्र नहीं मानती हैं।. भद्रबाहु की इन नियुक्तियों में श्रमण-जीवन से सम्बन्धित सभी
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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