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________________ वर्गीकरण में इसे भी चूलिका रूप में रखा गया है। अनुयोग का शाब्दिक अर्थ है, शब्दों की व्याख्या करने की प्रक्रिया । भद्रबाहु ने अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वार्तिक इन पाँचों को अनुयोग का पर्याय रूप कहा है। नन्दीसूत्र के समान यह ग्रन्थ भी प्राचीन है । इसके रचयिता आर्यरक्षित माने जाते हैं। इसमें चार द्वार है - उपक्रम, निक्षेप, अनुगम एवं नय । इन चारों द्वारों के माध्यम से आगम वर्णित तथ्यों, सिद्धान्तों एवं तत्त्वों की व्याख्या प्रस्तुत की गई है । व्याख्येय शब्द का निक्षेप करके, पहले उसके अनेक अर्थों का निर्देश करते हुए, प्रस्तुत में उस शब्द का कौनसा अर्थ ग्राह्य है, इस शैली को समझाया गया है। इस शैली के द्वारा सत्य का साक्षात्कार सहज ढंग से हो सकता है। प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये इस आगम ग्रन्थ की विषयवस्तु में विविधता है । सात स्वरों, नवरसों, व्याकरण की आठ विभक्तियों आदि का उल्लेख इसमें प्राप्त होता है । पल्योपम, सागरोपम आदि के भेद-प्रभेद, संख्यात, असंख्यात, अनन्त आदि का विश्लेषण, भेद, प्रकार आदि का विस्तृत वर्णन है । प्रमाण के वर्णन में प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा आगम की विशद चर्चा की गई है। प्रमाण की तरह नयवाद पर भी इसमें विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है । अनेकानेक विषयों का विवेचन किये जाने के कारण यह ग्रन्थ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । आगमिक- व्याख्या - साहित्य जैन आगम साहित्य में अत्यंत सूक्ष्म व गंभीर विषयों का सूत्र रूप में निरूपण हुआ है। सामान्यतः आगमों के समस्त गूढ़ रहस्यों और उनके विषयों को सीधे सम्यक् प्रकार से समझना संभव नहीं है, अतः इन आगमिक रहस्यों व सम्यक् विषयों को समझने के लिए जैनाचार्यों द्वारा इनकी विस्तार से व्याख्या प्रस्तुत की गई। इसी परम्परा में विविध आगमिक-व्याख्या - साहित्य का निर्माण हुआ। जैनागमों पर पाँच प्रकार का व्याख्या साहित्य उपलब्ध है। 1. निर्युक्ति 2. भाष्य 3. चूर्णि 4. टीका 5. टब्बा एवं लोक भाषा में लिखित साहित्य | निर्युक्ति साहित्य जैन आगम साहित्य पर सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में लिखी गई 52
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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