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सामान्य समाचारी का कथन किया गया है। इसके कर्ता भी भद्रबाहु हैं। इसे आवश्यकनियुक्ति का अंश माना जाता है। इसमें 811 गाथाएँ हैं, जिनमें साधओं के आचार-विचार का प्रतिपादन किया गया है। साध्वाचार का ग्रन्थ होने के कारण कहीं-कहीं ओघनियुक्ति की गणना छेदसूत्रों में भी की जाती है। जैन श्रमण संघ के इतिहास का संकलन करने की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। चूलिका
__ नंदीसूत्र व अनुयोगद्वारसूत्र की गणना चूलिकासूत्र में की जाती है। अतः इनका परिचय चूलिका सूत्र के अन्तर्गत दिया जा रहा है। नंदिसुत्तं
यह आगम चूलिका के नाम से जाना जाता है। नन्दीसूत्र के रचयिता देववाचक हैं। इनका समय वि.सं. की पाँचवी शताब्दी माना जाता है। नन्दीसूत्र का प्रमुख विषय ज्ञानवाद है। नियुक्तिकार के अनुसार भाव व निक्षेप से पाँच ज्ञान को नन्दी कहते हैं। इसमें पाँच ज्ञान की सूचना देने वाले सूत्र हैं, अतः इसका नंदीसूत्र नाम सार्थक है। इसमें पाँचों ज्ञान का विशद वर्णन उनके भेद-प्रभेदों के साथ किया गया है। नन्दीसूत्र में ज्ञान के सम्बन्ध में जो विश्लेषण किया गया है, उसका मुख्य आधार स्थानांग, समवायांग, भगवती, राजप्रश्नीय व उत्तराध्ययन सूत्र हैं। उनमें दिये गये संक्षिप्त ज्ञानवाद को नन्दीसूत्र में पूर्ण विकसित किया गया है। ज्ञान के विश्लेषण के अन्तर्गत मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय तथा केवलज्ञान की व्याख्या की गई है। सम्यक् श्रुत के प्रसंग में द्वादशांगी के आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग आदि बारह भेद किये गये हैं। जिनदासगणि महत्तर ने नंदीसूत्र पर चूर्णि की रचना की है तथा आचार्य हरिभद्र तथा आचार्य मलयगिरि ने इस पर टीकाएँ लिखी हैं। अणुओगद्दाराई
समस्त आगमों के स्वरूप व उनकी व्याख्याओं को समझने की दृष्टि से अनुयोगद्वारसूत्र एक महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ है। आगमों के