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________________ आवस्सयं I आवश्यक सूत्र जीवन-शुद्धि और दोष- परिमार्जन का महासूत्र है आवश्यक साधक की आत्मा को परखने व निखारने का महान उपाय है 'अवश्य' से आवश्यक बना है, अर्थात् जो चतुर्विध संघ के लिए प्रतिदिन अवश्य करने योग्य है, वह आवश्यक है। आवश्यक के छः प्रकार बताये गये हैं - — 1. सामायिक 4. प्रतिक्रमण 2. चतुर्विंशतिस्तव 5. कायोत्सर्ग 3. वन्दना 6. प्रत्याख्यान । छः अध्ययनों में इनका विवेचन किया गया है। आवश्यक का आध्यात्मिक दृष्टि से तो महत्त्व है ही, दैनिक जीवन में भी इसके पालन से क्षमा, आर्जव आदि गुणों का विकास होता है । यह सूत्र श्रमण - श्रमणियों के साथ-साथ श्रावक-श्राविकाओं के लिए भी पाप - क्रियाओं से बचकर धर्म मार्ग में अग्रसर होने की प्रायोगिक विधि प्रस्तुत करता है । अतः यह साधु व श्रावक दोनों के लिए ही महत्त्वपूर्ण है । पिंडणिज्जुत्ती - ओहणिज्जुत्ती पिंडनिर्युक्ति एवं ओघनिर्युक्ति की गणना कहीं मूलसूत्रों में और कहीं प्रकीर्णक साहित्य में की जाती है, फिर भी साधुओं के आचार-व्यवहार का निरूपण होने के कारण इन दोनों ग्रन्थों को मूल 45 आगमों में सम्मिलित किया गया है। पिंड का अर्थ है श्रमण के ग्रहण करने योग्य आहार । इसमें श्रमणों की आहार विधि का वर्णन हुआ है, अतः इसका पिंडनिर्युक्ति नाम सार्थक है। इसके रचयिता आचार्य भद्रबाहु हैं। दशवैकालिकसूत्र के पाँचवें अध्याय पिंडैषणा पर लिखी गई नियुक्ति के विस्तृत हो जाने के कारण पिंडनिर्युक्ति के नाम से अलग आगम की मान्यता दी गई है । भद्रबाहु ने इस ग्रन्थ में 671 गाथाओं में पिंडनिरूपण, उद्गमदोष, उत्पादनदोष, ग्रासदोष, एषणादोष आदि का विवेचन किया है। ओघ का अर्थ है सामान्य । विस्तार में गये बिना ओघनिर्युक्ति में 50
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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