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________________ 1. चउसरण 2. आउरपच्चक्खाण 4. भत्तपरिणा 5. तंदुलवेयालिय 8. गणिविज्जा 7. गच्छायार 10. मरणसमाहि । कोई मरणसमाधि और गच्छाचार के स्थान पर चन्द्रवेध्यक और वीरस्तव को गिनते हैं तो कोई देवेन्द्रस्तव और वीरस्तव को मिला देते हैं तथा संस्तारक को नहीं गिनते, किन्तु इनके स्थान पर गच्छाचार और मरणसमाधि का उल्लेख करते हैं । 3. महापच्चक्खाण 6. संथार 9. देविंदत्थय इनमें से कुछ को छोड़कर शेष प्रकीर्णक प्राचीन ही हैं। तंदुलवेयालिय का उल्लेख अगस्त्यसिंह की दशवैकालिकचूर्णि में मिलता है । इन 10 प्रकीर्णकों के अतिरिक्त तित्थोगालिय, अजीवकल्प, सिद्धपाहुड, आराहणापहाआ, दीवसायरपण्णत्त, जोइसकरंडग, अंगविज्जा, पिंडविसोहि, तिहिपइण्णग, सारावली, पज्जंताराहणा, जीवविहत्ति, कवचप्रकरण और जोणिपाहुड भी प्रकीर्णक माने गये हैं। - वस्तुतः भगवान् ऋषभदेव से भगवान् महावीर तक प्रज्ञावान स्थविर साधुओं द्वारा स्वबुद्धि एवं वचनकौशल से धर्म तथा तत्त्व ज्ञान को जनसाधारण तक पहुँचाने की दृष्टि से तथा कर्म निर्जरा के उद्देश्य से प्रकीर्णकों की रचना की गई। ये रचनाएँ प्रायः पद्यात्मक हैं। इनमें जैन धर्म सम्बन्धी विविध विषयों की चर्चा करते हुए जीवन शोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । चतुः शरण में अरिहंत, सिद्ध, साधु और जिनदेशित धर्म को एक मात्र शरण माना है । यथा अरिहंत सिद्ध साहू केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो । एए चउरो चउगइहरणा, सरणं लहइ धन्नो (गा. 11 ) आतुरप्रत्याख्यान में बालमरण, बालपंडितमरण व पंडितमरण से सम्बन्धित विस्तृत विवेचन के साथ-साथ प्रत्याख्यान की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए उसे शाश्वत गति का साधन बताया है । महाप्रत्याख्यान में त्याग का विस्तृत वर्णन है तथा मरणसमाधि में समाधिमरण की पूर्व तैयारी और 42
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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